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आलोक

जया आर्य
भोपाल म.प्र.
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बुझा हुआ है दिल का कोना
आलोकित उसको कर दें,
वक्त फागुनी आ गया है
दिल का दिया जला ले।

खोलें खिड़की और दरवाज़े
खुली हवा में जी लें,
वक्त फागुनी आ गया है
मन आलोकित कर लें।

सूरज ने भी किरण बिखेरी
कीट पतंगे झूमे
ईश्वर ने दुनिया रच डाला
हम सब संग संग जी लें।

नहीं भरोसा है राहों का
अगले पल क्या होगा,
जीवन के इस पगडंडी को
हम आलोकित कर दें।

परिचय – जया आर्य
जन्म : १७ मई १९४७
निवासी : भोपाल म.प्र.
शिक्षा : तमिल भाषी अंग्रेज़ी में एमए.
उपलब्धि : ग्रेड १, हिंदी उदघोषक आकाशवाणी मुम्बई, जगदलपुर और भोपाल में कार्यरत। अध्यक्ष शांतिनिकेतन महिला कल्याण समिति।
प्रख्यात उद्घोषिका होते हुए उभरते हुए उदघोषकों को प्रशिक्षित किया। जेलों में कैदियों पढ़ने लिखने हेतु प्रेरित किया, जेल मंत्री से सम्मानित। झुग्गी इलाकों में ९५० महिलाओं और बच्चो को साक्षर व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बनाया। नशा मुक्ति एवं पुनर्वास केंद्र, अस्पताल का संचालन किया।
सम्मान : १९८६ में अहिन्दीभाषी हिंदी सेवी सम्मान म.प्र. के राज्यपाल डॉ. के एम चांडी द्वारा
१९९२ में समाज सेवी सम्मान त्रिपुरा के राज्यपाल द्वारा।
१९९५ में सुनामी पीड़ितों के लिए कार्य करने पर राज्यपाल डॉ. बलराम जाखड़ द्वारा सम्मानित।
२००६ में रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट ३०४० द्वारा बेस्ट सेक्रेटरी अवार्ड।
२००९ में रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट ३०४० की बेस्ट प्रेजिडेंट अवार्ड।
२०१६ को लोकायुक्त द्वारा समाज सेवा हेतु सम्मानित।
२०१८ को सहारा टी वी द्वारा अमीन सायनी और तबससुम के साथ राष्ट्रीय सम्मान।
२०१९ मे राष्ट्र भाषा प्रचार समिति की ओर से लघुकथा शतक के लिये हरिहर निवास द्विवेदी सम्मान।
रोटरी क्लब द्वारा व अन्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
बुडापेस्ट हंगरी में विश्व हिंदी सहित्यपरिषद की ओर से लेखन कार्य के लिए साहित्य सरोवर सम्मान।
यात्रा : यू के, यू एस ए, थाईलैंड मॉरीशस और यूरोप।
संप्रति : लघुकथा और काव्य लेखन। दो पुस्तक लघुकथा शतक और गुगुनाते बोल प्रकाशित l
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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