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सब मेरा परिवार

वीणा वैष्णव
कांकरोली

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गोद माता की मिले, और संग मिले पिता प्यार।
नहीं जाना मुझे काशी मथुरा, सब मेरा परिवार।

माँ बच्चों की प्रथम गुरु, है वो सबकी मूलाधार।
जन्म दिया माता, गुरु ही देता सदा आकार।

सदा प्रसिद्धि पाई जग में, संग पाया सम्मान।
मात पिता से दूर गए, तो समझो जीवन बेकार।

नेह दिखाती माँ सदा, पिता का सतत व्यवहार।
परिवार संग जीवन यापन, यह जीवन आधार।

वो राह भटक गए, नहीं मिला उन्हें कोई छोर।
दर-दर ठोकर खाते रहे, वह बने रहे बस ढोर।

स्वच्छंदता उन्हें पसंद, नहीं चाहिए कोई रोक।
बिन लगाम घोड़े बने, वह अब दौड़े चहुँओर।

राह खड़ी करते मुश्किल,वो जीवन जीते ढोर।
ऐसा जग में वो करते, जो वंचित रहे संस्कार।

कर ले कुछ अच्छा जग में, बन जा तू सिरमोर।
नहीं पाएगा जीवन मनु, बस भटकेगा चहुँओर।

कहती वीणा मान जा, और गले बांधले डोर।
आवारा ज्यूं भटकता रहा, नहीं मिलेगा छोर।

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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।


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