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सब ठीक है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उ.प्र.)
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सब ठीक है,
सब अच्छा है
थकी हुई हूं पर
हारी नहीं हो अभी तक,
“थकान” का अर्थ
आज जा के समझ आया
मीलों चले हैं,
मगर थकान” अब जा के हुई है
शायद जिंदगी की परिभाषा में
ये नया शब्द उभर कर आया है
कोई पूछे, थकान क्यूं है?
कैसे परिभाषित करूं इस शब्द को!!!
कभी कठोर शब्दों की
बारिश भी तो थका देती है।
बारिश की बूंदें जितना
सुकून देती हैं,
“थकान” की बूंदें उतनी ही
विरक्ति भर देती हैं
तपती धूप में
कोसों चलता है ये जीवन
दर बदर की भटकन को साथ लिए।
मगर तब भी न जाने क्यूं
“थकान” महसूस नही होती
जिंदगी की परिभाषा भी
अजीब उलझने पैदा करती है,
कभी जन्नत तो कभी
थका सा महसूस करती हैं
कभी तमाशा बन जाती है
तो कभी तमाशबीन की तरह
दूर खड़े हो कर खिलखिलाती है
उम्र, हालात, समय, बदल जाते हैं,
अच्छाइयां इंसान की
कमजोरी बन जाती हैं,
मन के दर्पण पर
थकी हुई लकीरें उभर आती हैं
कोशिशें, अच्छाइयां, सबको
खुश रखने की चाह,
इंसान को असफल बना देती हैं,
अंत तक इस “थकान” का अर्थ
समझना समझाना,
नामुमकिन सा लगने लगता है
इंसान कहता ही रह जाता है,
“सब ठीक है, सब अच्छा है”।

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उ.प्र.)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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