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परिचित-अपरिचित

विश्वनाथ शिरढोणकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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सुबह के नौ बजे थे I गुरु परिचित अपने नित्यकर्म निपट कर चिंतन की मुद्रा में अपने एसी कक्ष में बैठे थे I पर आज उनका मन चिंतन में नहीं लग रहा था I वह सुबह से ही अशांत था और सूर्योदय से अभी तक गुरु परिचित को स्वस्थ चिंतन नहीं करने दे रहा था I गुरु परिचित का मन अस्वस्थ होने का भी एक कारण था I कल देर रात को उनके ख़ास और परमप्रिय लाडले शिष्य कुमार अपरिचित को एक फार्महाउस में देर रात चलने वाली रेव्ह पार्टी में नशे में धुत , एक लड़की के साथ आपत्तिजनक अवस्था में पुलिस ने गिरफ्तार किया था I गुरु परिचित को यह बात रात में ही सेवक ने जगा कर बताई थी I गुरु परिचित तुरंत पुलिस थाने में जाकर उनके लाडले शिष्य कुमार अपरिचित को अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर छुड़ाकर लाए थे I इस बात की उन्होंने किसी को भी कानोकान हवा तक नहीं लगने दी और मिडिया से बचाते हुए नशे में डूबे शिष्य कुमार अपरिचित को सुरक्षित आश्रम में लेकर आए थे I शिष्य कुमार अपरिचित को उसके कमरे में लाकर गुरू परिचित ने पलंग पर सुलाया, कमरे का एसी चालू किया I शिष्य कुमार अपरिचित के जूते उन्होंने स्वयं अपने हाथों से उतार कर जगह पर रखे I उसे मखमली कम्बल ओढाया और अब इस बारे में शिष्य कुमार अपरिचित से सुबह ही बात करेंगे यह सोचकर , वें अपने खुद के एसी कक्ष में वापस आकर सोए थे I
शिष्य कुमार अपरिचित गुरु परिचत के गुरुकुल का सबसे कमाऊ मूल्यवान ऐसा शिष्य था I प्रसिद्ध समाजसेवी , एक राजनीतिक पार्टी के संस्थापक ,अनेक बार मंत्रीपद सुशोभित कर चुके स्थानीय सांसद और देश के प्रसिद्ध उद्योगपति अरबपति श्रीमान स्वर्णकुमार का इकलौता पुत्र था शिष्य कुमार अपरचित I इसीलिए गुरु परिचित अपने शिष्य की देखभाल सावधानीपूर्वक हाथ के तलवों के फोड़े जैसा करते थे I उसकी हर जरुरत का वें खुद ध्यान रखते I वें अच्छी तरह से जानते थे कि शिष्य कुमार अपरिचित की नाराजी उनके लिए और उनके गुरुकुल के लिए बहुत महंगी पड़ सकती हैं I कौन जाने उनका यह सर्वसुविधा युक्त पंचतारांकित वातानुकूलित गुरुकुल ही बंद हो जाय ? या फिर शिष्य कुमार अपरिचित के पिता से हर साल लाखों रुपयों का मिलने वाला नगद दान और मिलने वाली सारी सुविधाएं ही बंद हो जाय ?
तो इस तरह कल रात की घटित घटना के कारण गुरु परिचित का चित्त स्थिर नहीं था I सेवक ने उनके सामने चांदी की अलग अलग कटोरियों में नाश्ते के लिए काजू , किसमिस , बादाम , अखरोट , समेत अलग अलग सूखे मेवे तथा दूध से भरे गिलास के साथ एक अलग तश्तरी में कुछ फल लाकर रखे थे I अशांत गुरु परिचित के मन में बहुत हलचल हो रही थी I उन्होंने सबसे पहिले काजू की कटोरी अपने आगे रखी , एक काजू मुंह में डाला और मन ही मन बोले , ‘ अपराध नहीं हुआ I ‘ इसके बाद उन्होंने एक और काजू मुंह में डाला और मन ही मन बोले , ‘ अपराध हुआ I ‘
ऐसा करते-करते सारे काजू ख़त्म हो गए I पर आखरी काजू उनके मुंह में ,’ अपराध हुआ ‘ के नाम पे आया I अब गुरु परिचित की अस्वस्थता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई I उनको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था I वो कोई निर्णय नहीं ले पा रहे थे I अब उन्होंने बादाम से भरी चांदी की कटोरी अपने सामने रखी I इस बार एक बादाम मुंह में डालते हुए वे मन ही मन बोले , ‘ गुन्हा माफ़ी लायक नहीं था I ‘ इसके बाद उन्होंने एक और बादाम मुंह में डाला और मन ही मन बोले , ‘ गुन्हा माफ़ी लायक था I’ ऐसा करते करते कटोरी के सारे बादाम ख़त्म हो गए पर दुर्भाग्य यह कि आखरी बादाम जो उनके मुंह में आया था वह ,’ गुन्हा माफ़ी लायक नहीं था ‘ इसके लिए था I अब गुरु परिचित कुछ ज्यादा ही घबरा गए I अपने शिष्य कुमार अपिरिचित के लिए वे चिंतित हो गए I काजू और बादाम खाने के कारण ही उन्हें उनके शिष्य कुमार अपरिचित के अपराधी होने का बोध हुआ , और यह कि यह गुन्हा कानून की नजर में भी माफ़ी लायक भी नहीं था I उनकी बेचैनी बढ़ने लगी I सूखे मेवे की चांदी की कटोरियाँ , दूध से भरा चांदी का गिलास , फलों की तश्तरी उन्होंने एक पल में ही दूर कर दी I अब नाश्ता करने में उनका मन लगने वाल नहीं था I उन्हें किसी अनहोनी और मुसीबत की आहट सामने दिखाई देने लगी I
गुरु परिचित सोच रहे थे कि , शिष्य कुमार अपरचित की रेव्ह पार्टी की और गिरफ्तारी की खबर अगर मिडिया को मिल गई और उसके बाद अगर सारे देश को पता पड गई तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा I शिष्य कुमार अपरिचितके पिता अरबपति स्वर्णकुमार शांत नहीं बैठेंगे I शिष्य कुमार अपरिचित अपने पिता के राजकीय पक्ष की युवा शाखा का अध्यक्ष भी था और गुरुकुल में उनके रहते शिष्य कुमार अपरिचित के साथ ऐसी मुसीबत का आना उसके पिता सहन नहीं करेंगे और सारा दोष गुरु परिचित पर डाल देंगे I ऊपर से सारी नाराजी गुरु परिचित को ही झेलनी पड़ेगी I इसी बात का डर गुरु परिचित को सता रहा था I गुरु परिचित सोच रहे थे कि कहीं ऐसा ना हो कि शिष्य अपरिचित के रसूकदार पिता स्वर्णकुमार इसे गुरुकुल का और उनका षड्यंत्र साबित कर के अलग हो जाएं ? नेताओं का क्या भरोसा ? लेकिन इस के बाद गुरुकूल को मिलने वाली सरकारी ग्रांट , स्वर्णकुमार से मिलने वाला भारी भरकम दान और अन्य सभी सुविधाओं से वंचित होने की संभावना भी बन सकती हैं I गुरुकुल की प्रतिष्ठा का भी सवाल पैदा होगा I उन्हें अपने पंचतारांकित ऐशोआराम का भी त्याग करना पड सकता हैं I इन सब की कल्पना मात्र से ही गुरु परिचित भयभीत हो गए I तुरंत अपनी जगह से उठ खड़े हुए और तेज क़दमों से चल कर सीधे अपने लाडले शिष्य कुमार अपरिचित के एसी कमरें की ओर बढे I सुबह के दस बज चुके थे I शिष्य कुमार अपरिचित गहरी नींद में खर्राटे भर रह थाI

गुरु परिचित शिष्य कुमार अपरिचित के पैरों के पास विनम्रता से हाथ बांधे खड़े होकर अपने शिष्य कुमार अपरिचित के जागने का इन्तजार करने लगे I शिष्य कुमार अपरीचित के जागने का इन्तजार करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प ही नहीं था I क्योंकि वें अच्छी तरह से जानते थे कि वें भले ही अपने आप को द्रोणाचार्य समझते हो पर युद्ध का सामना तो उनके अर्जुन को ही करना हैं I लगभग सुबह ग्यारह बजे शिष्य कुमार अपरिचित ने आड़ेटेड़े होते हुए अलसाई आँखों से अपने गुरु को सामने हाथ बांधें खड़े हुए देखा I अपने शिष्य को अपनी ओर देखते ही गुरु परिचित धन्य धन्य हो गए I वें अपने आप को उपकृत भी समझने लगे I
‘ बेटा , मेरे लाडले शिष्य कुमार अपरिचित उठ गए क्या ? ‘ बड़े स्नेह से उन्होंने डरते डरते बड़ी धीमी आवाज में पूछा I
‘ यस .’ कहकर शिष्य कुमार अपरिचित ने फिर से अपने मुंह को मखमली ओढने से ढँक लिया I
‘ वत्स ! उठिए . बेटा ग्यारह बज गए . कल रात की थकान अभी मिटी नहीं हैं क्या ? सर भारी हैं क्या ? मैं दबा दूँ क्या ? ‘ गुरु परिचित के अत्यंत स्नेह भरे मीठे बोलों से विलक्षण विनम्रता टपक रही थी I उन्होंने बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए एक सेवक को ‘ बेड टी ‘ लाने को कहाँ I जब तक बेड पर न ली जाए वह बेड टी कैसे हो सकती हैं ?

सेवक बेड टी लाकर रख गया I बेड टी की महक के कारण शिष्य कुमार अपरीचित ने मुंह के ऊपर से मखमली ओढना हटाया I गुरु परिचित ने अपने हाथों से चाय का कप अपने लाडले शिष्य कुमार अपरीचित के हाथ में दिया और फिर से अपनी पूर्ववत मुद्रा में हाथ बांधे विनम्रता से खड़े हो गए I चाय के एक एक घूंट के साथ गुरु परिचित के चेहरे पर समाधन और प्रसन्नता के भाव उमटते जा रहे थे I चाय ख़त्म होने तक गुरु परिचित मंत्रमुग्ध अपने शिष्य कुमार अपरिचित को नजर भर के देखते रहे I चाय ख़त्म होते ही गुरु परिचित ने आगे बढ़ कर शिष्य कुमार अपरिचित के हाथ से चाय का कप लिया और उसे सेवक को दिया I गुरु को अभी भी अपने सामने विनम्र मुद्रा में खडा देख शिष्य कुमार ने अपने गुरु की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा मानो पूछ रहा हो,‘ अब क्या? ‘

गुरु परिचित शिष्य कुमार अपरीचित से बोले ,’बेटा , कुमार अपरीचित , फ्रेश होकर मेरे कक्ष में थोड़ी देर के लिए आ सको तो बेहतर होगा . कुछ जरुरी बात करनी हैं I ‘ शिष्य कुमार अपरिचित ने सिर्फ गर्दन हिलाई और गुरु अपने शिष्य की स्वीकृति पाकर बड़ी प्रसन्नता से अपने कक्ष में लौट गए I

थोड़ी देर बाद शिष्य कुमार अपरिचित अपने गुरु परिचित के कक्ष में आया I शिष्य कुमार अपरीचित को देखते ही गुरु परिचित बड़े आदर के साथ तुरंत खड़े हो गए I उन्होंने शिष्य अपरिचित का अभिवादन किया और उसका हाथ पकड़कर उसे बड़ी आत्मीयता से आसनस्थ होने का आग्रह किया I गुरु परिचित के आग्रह को मान देते हुए शिष्य अपरिचित आसनस्थ हुआ I गुरु परिचित उसके सामने विनम्रता पूर्वक खड़े थे I

‘ कहिए ऐसी क्या महत्वपूर्ण बात करनी हैं आपको ? ‘ शिष्य कुमार अपरीचित ने कुछ उपेक्षित और रूखेपन से पूछा I
‘ नही …मतलब… बेटा ……’ बिलकुल विनम्रता पूर्वक गुरु परिचित बोले , ‘ …वैसे कुछ ख़ास नहीं हैं ….इसे .. गंभीरता से मत लेना और चिंता करने की तो बिलकुल जरुरत ही नहीं है …. मैं हूँ ना सब सम्हालने के लिए … मेरे ..को यह . … यह .. बताना हैं .. ‘
‘ अब बताइए भी …’ शिष्य कुमार अपरिचितने उनको बीच में ही टोक दिया I
‘बताता हूँ I बेटा , कोई ग़लतफ़हमी ना हो … मुझे अत्यंत विनम्रता पूर्वक यह बताना हैं कि कल रात को पुलिस को तुम्हें गिरफ्तार नहीं करना चाहिए था I अब यह खबर चारों और फ़ैल गई हैं . ‘
‘ पुलिस की तो …….. ‘
” शांत हो जाओ बेटे I आपका नाम मैंने कहीं भी नहीं आने दिया हैं ’ I गुरु परिचित के चेहरे पर विजयी भाव थे , ‘ पर मिडिया तो सब खोज ही लेगा ना ? फिर ? ‘
‘आपको मुझसे कुछ महत्वपूर्ण बातचीत करनी हैं ना ? शिष्य कुमार अपरिचित अब मिडीयाके बाउन्सर से थोडा चिंतित हो उठा I उसका स्वर भी थोडा नरम हुआ I

‘ मत चिंता करो मिडिया की I मैं सब मेनेज कर लूंगा I क्या हैं बेटा , अब दो दिनों बाद आप वापस जाने वाले हो आपके घर I एक सफल राजनीतिज्ञ , एक सफल उद्योगपति , और प्रभावी सांसद के इकलौते बेटे हो आप I अरबों रुपयों की विशाल सम्पति के इकलौते वारिस भी हो आप I सत्ता और सम्पति में हमेशा खेलते रहने वाले और ऐश करने वाले हो I अपने इस छोटे से गुरुकुल और गुरु को भूल नहीं जाना यहीं अपेक्षा I ‘
‘ आप तो मेनेजमेंट के गुरु हो I आप तो सब मेनेज कर ही लोगो ? राजनीति में , सत्ता में , व्यवस्था में और समाज में सबका संतुलन कैसे कुशलतापूर्वक कर सकते हैं और सबको कैसे सम्हाल सकते हैं इसीका शास्त्रशुद्ध , तर्कशुद्ध , उच्च प्रक्षिशण लेने के लिए ही तो मेरे पिता ने मुझे आपके पास यहाँ भेजा हैं ना ? मैं यह सब कैसे भूल सकता हूँ ? मांगिए…बिना संकोच कहिए क्या चाहिए आपको ? ‘ शिष्य कुमार परिचित ने कहाँ I
‘वो बताता हूँ . पर पहिले यह बताइए कि आप लंच में क्या लेंगे ? आपकी पसंद का चिकन सूप भी बोला हैं I ‘
‘ चलेगा,लंच में कुछ भी चलेगा I डिनर का ही ख़याल रखना पड़ता हैं I खैर I आप बताइए क्या इच्छा हैं आपकी ? क्या चाहिए गुरुदक्षिणा में आपको ?‘ शिष्य कुमार अपरिचित ने तथास्तु के भाव में अपना हाथ उठाया I गुरु परिचित ने इधर उधर देखा I सेवक को बाहर जाने का इशारा किया I थोडे से संकोच के बाद धीरे से बोले , ‘ साहब से कह कर मेरा स्विस बेंक में एक खाता खुलवा दो I’
‘ ये क्या कह रहे हैं आप ? ‘ शिष्य कुमार अपरिचित तुरंत उठकर खड़ा हो गया I
‘परेशान होने की जरुरत नहीं हैं I द्रोणाचार्य ने एकलव्य से जैसे अंगूठा मांगा था वैसे कुछ भी नहीं मांगा हैं मैंने ? ‘ गुरु परिचित बोले I

‘ वो मैं देता भी नहीं आपको I ‘ शिष्य कुमार अपरिचित बोला , ‘ आज के ज़माने में कोई गुरु इस तरह की मुर्खतापूर्ण मांग करेगा भी नहीं और कोई शिष्य उनकी इस मांग को पूरा करेगा भी नहीं I इतना ही नहीं , अगर एकलव्य आज के जमाने में होता तो अर्जुन के ही दोनों अंगूठे कांट कर अपने गुरु को गिफ्टपेक में बर्थ डे गिफ्ट कह कर दे देता I’
‘ अरे बेटा मुझे मालूम हैं सब I अपने साहब एक बड़े प्रभावशाली नेता हैं I कई बार मंत्री , सांसद और विधायक रह चुके हैं I अरबपति उद्योगपति हैं I कई फेक्ट्रिया , दो-तीन विश्वविद्यालयों के सर्वेसर्वा हैं I खेतीबाड़ी भी बहुत हैं I अनेक फलों के बगीचे हैं I कई किसानों की जमीन उनेक पास हैं I ऊपर से अनेक संस्थाओं में भी हैं I क्या क्या नहीं उनके पास ? वैभव , प्रतिष्ठा , और पैसा उनके आंगन में खेल रहे हैं I उनके लिए क्या असंभव हैं ? इस हिसाब से तो मेरी बहुत छोटी सी इच्छा हैं ? मेरे लिए कहेंगे क्या उनसे ?‘

‘ स्विस बेंकों में भारतियों की जो बेनामी सम्पति हैं ना आजकल उसके नाम से कितना हो हल्ला हो रहा हैं , मालूम हैं क्या आपको ? हमारे देश में सभी यहाँ तक कि अन्ना और बाबा भी स्विस बेंक के पीछे लगे हैं I कह रहे हैं कि स्विस बेंक के सारे घोटालों की प्रदर्शनी जंतरमंतर पर लगाएंगे I पर हमारी पार्टी वैसा कतई नहीं होने देगी I सच तो यह कि मेरे डेड ने स्विस बेंक की भारतभर में शाखाएँ खोलने के लिए बहुत प्रयास किए थे पर उसी समय अन्ना बाबा के आन्दोलन शुरू हो गए इसलिए यह संभव नहीं हो पाया I वैसे देखता हूँ आपके लिए क्या किया जा सकता हैं ? पर फिर आप मेरे लिए क्या करेंगे ? ‘ शिष्य कुमार अपरिचित को सिर्फ स्विस बेंक का पूरा इतिहास ही बताना बाकी बचा था I ‘ कुछ भी ‘ अर्जुन को जैसे श्रीकृष्ण ने तैयार किया वैसे ही मैं आपको राजनीती में तैयार करूँगा I आपका सारथि बन कर हमेशा साये की तरह आपके साथ रहूँगा I ‘ गुरु परिचित अपने शिष्य कुमार अपरिचित के आगे नतमस्तक थे I
‘ नहीं नहीं I कृष्ण खुद ही आजकाल दिग्विजयी हो गए हैं I और अर्जुन का पूछेंगे तो इस देश में अर्जुन की किसी ने कभी कौड़ी की भी कीमत नहीं की I आपको पता हैं सारी राजनीति ? ‘ इस बार शिष्य कुमार अपरिचित ने अपने गुरु परिचित पर गुगली फेंक दी I गुरु परिचित उसे समझ नहीं पाए और क्लीन बोल्ड होते होते बचे I
‘ जाने दीजिए I अर्जुन ही जब जब खुद को श्रीकृष्ण समझने का अपराध करेगा तब तब वह ऐसे ही मुंह के बल गिरेगा I ‘

‘ गुरुजी , मैं अब एक दो दिन में यहाँ से जाने वाला हूँ I पर राजनीति के फंडे और मेनेजमेंट के फंडे इसमें मुझे अभी भी बहुत कन्फ्यूजन होता हैं I कभी कभार तो मैं चकरा जाता हूँ I डेड के पास इतना पैसा कहाँ से आता यह पता ही नहीं पड़ता I उनके भ्रष्टाचार का विश्लेषण नहीं कर पाता I सोचता हूँ बिना यह सब सीखे मेरा क्या होगा ? ‘
गुरु परिचितने स्मित हास्य किया I

‘बेटा, राजनीती और मेनेजमेंट के घालमेल को अलग करना मुश्किल ही हैं I क्योंकि एक ही समय ढेर सारे निर्णय एक साथ लेने की किसी मशीन का अब तक अविष्कार ही नहीं हुआ हैं I परन्तु हर एक निर्णय अलग से लिया गया हैं , और अनेकों के लिए लिया गया हैं , और ढेर सारे निर्णय लेने के बावजूद वह एक साहसी कदम जैसा ही हैं , इसका प्रचार जरुर किया जा सकता हैं I हर एक निर्णय में भ्रष्टाचार एक छुपा निर्णय रहता हैं और आश्चर्य यह कि वह सर्वमान्य होता हैं I एक बात याद रहे सारी सत्ता भ्रष्ट ही होती हैं I और सत्ता मतलब निर्णय लेने का केंद्र स्थान और व्यवस्था का अटूट महागठबंधन I’ गुरु परिचित यह अच्छी तरह जानते थे कि शिष्य अपरिचित दिखाता हैं उतना भोला और मूर्ख कतई नहीं है I शायद वो अपने गुरु की ही परीक्षा ले रहा हो I इसलिए गुर परिचित सतर्क ही थे I
‘बेटा , सच तो यह हैं कि राजनीति और प्रबंधन ये दो अलग अलग विषय हैं I परन्तु राजनीती का प्रबंधन और प्रबंधन की राजनीती एक ही विषय हैं I ‘
‘शिष्य कुमार अपरिचित ने सब समझ जाने के भाव अपने चेहरे पर लाए I तू डाल डाल मैं पात पात की तर्ज पर गुरु परिचित ने भी शिष्य कुमार अपरिचित के चेहरे के भाव समझ में आ गए हैं इस संतुष्टि के भाव अपने चेहरे से प्रगट किये I इसके बाद गुरु परिचित ने अपने लाडले शिष्य कुमार अपरिचित को प्री लंच सेशन में राजनीती और मेनेजमेंट का हितकारी मिश्रण और उससे साध्य स्वार्थ का बहुत ही उपयोगी प्रवचन बिलकुल पंचतंत्र की कथाओं जैसा बालसुलभ भाषा में आसान तरीके से समझकर दिया I

इसके बाद तय किये अनुसार गुरु परिचित ने अपने लाडले शिष्य कुमार अपरिचित को उसकी पसंद का स्वादिष्ट यथेष्ट , वेज-नॉनवेज मिक्स्ड ऐसा लंच करवाया I दो दिन बाद ही शिष्य कुमार अपरिचित को एक भव्य समारोह में अनेक भेट वस्तुओं के साथ सन्माननीय तरीके से विदाई दी गई I
इसके एक वर्ष पश्चात् ही शिष्य कुमार अपरिचित के पिता अरबपति प्रभावशाली राजनेता स्वर्णकुमार के रहस्यमय निधन के समाचार सारे देश में अख़बारों में और मिडिया पर छा गए थे I इसके तुरंत बाद उनकी पार्टी ने शिष्य कुमार अपरिचित को अपने दल का अध्यक्ष बनाया I उसे मंत्री पद से भी नवाजा गया I पर जिस दिन शिष्य कुमार अपरिचित ने मंत्रीपद की शपथ ली उसी रोज मध्यरात्रि को पुलिस ने गुरुकुल पर छापा डाल कर गुरु परिचित को गिरफ्तार किया I उनके गुरुकुल पर ताला लगाया गया I दूसरे दिन लोगो ने अखबारों में पढ़ा , ‘ गुरुकुल के गुरु परिचित गिरफ्तार I स्विस बेंक में खाते , हवाला से करोडो का लेनदेन , सेक्स रेकेट और रेव्ह पार्टी जैसे आयोजन , बेहिसाबी बेनामी सम्पति के जैसे कई आरोपों में उनकी गिरफ्तारी I पर किसी भी अपराध का कोई विवरण अखबारों में नहीं दिया गया था

परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर
मध्य प्रदेश इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, ‘नई दुनिया’ में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दिनों मराठी के प्रसिध्द लेखकों, यदुनाथ थत्ते, राजा-राजवाड़े, वि. आ. बुवा, इंद्रायणी सावकार, रमेश मंत्री आदि की रचनाओं का मराठी से किया हुआ हिंदी अनुवाद भी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इंदौर से ही प्रकाशित श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति की प्रसिध्द मासिक पत्रिका ‘वीणा’ में आपके द्वारा लिखित कहानियों का प्रकाशन हुआ। आपकी और भी उपलब्धियां रही जैसे आगरा से प्रकाशित ‘नोंकझोंक’, इंदौर से प्रकाशित, ‘आरती’ में कहानियों का प्रकाशन। आकाशवाणी इंदौर तथा आकाशवाणी भोपाल एवं विविध भारती के ‘हवा महल’ कार्यक्रमों में नाटको का प्रसारण। ‘नईदुनिया’ के दीपावली – २०११ के अंक में कहानी का प्रकाशन। उज्जैन से प्रकाशित, “शब्द प्रवाह” काव्य संकलन – २०१३ में कविता प्रकाशन। बेलगांव, कर्नाटक से प्रकाशित काव्य संकलन, “क्योकि हम जिन्दा है” में गजलों का प्रकाशन। फेसबुक पर २०० से अधिक हिंदी कविताएँ विभिन्न साहित्यिक समूहों पर पोस्ट। उपन्यास, “मैं था मैं नहीं था” का फरवरी – २०१९ में पुणे से प्रकाशन एवं काव्य संग्रह “उजास की पैरवी” का अगस्त २०१८ में इंदौर सेर प्रकाशन। रवीना प्रकाशन, दिल्ली से २०१९ में एक हिंदी कथासंग्रह, “हजार मुंह का रावण” का प्रकाशन लोकापर्ण की राह पर है।
वहीँ मराठी में इंदौर से प्रकाशित, ‘समाज चिंतन’, ‘श्री सर्वोत्तम’, साप्ताहिक ‘मी मराठी’ बाल मासिक, ‘देव पुत्र’ आदि के दीपावली अंको सहित अनेक अंको में नियमित प्रकाशन। मुंबई से प्रकाशित, ‘अक्षर संवेदना’ (दीपावली – २०११) तथा ‘रंग श्रेयाली’ (दीपावली २०१२ तथा दीपावली २०१३), कोल्हापुर से प्रकाशित, ‘साहित्य सहयोग’ (दीपावली २०१३), पुणे से प्रकाशित, ‘काव्य दीप’, ‘सत्याग्रही एक विचारधारा’, ‘माझी वाहिनी’,”चपराक” दीपावली – २०१३ अंक, इत्यादि में कथा, कविता, एवं ललित लेखों का नियमित प्रकाशन। अभी तक ५० कहानियाँ, ५० से अधिक कविताएँ व् १०० से अधिक ललित लेखों का प्रकाशनI फेसबुक पर हिंदी/मराठी के ५० से भी अधिक साहित्यिक समूहों में सक्रिय सदस्यता। मराठी कविता विश्व के, ई – दीपावली २०१३ के अंक में कविता प्रकाशित।
एक ही विषय पर लिखी १२ कविताऍ और उन्ही विषयों पर लिखी १२ कथाओं का अनूठा काव्यकथा संग्रह, ‘कविता सांगे कथा’ का वर्ष २०१० में इंदौर से प्रकाशन। वर्ष २०१२ में एक कथा संग्रह, ‘व्यवस्थेचा ईश्वर’ तथा एक ललित लेख संग्रह, ‘नेते पेरावे नेते उगवावे’ का पुणे से प्रकाशन। जनवरी – २०१४ में एक काव्य संग्रह ‘फेसबुकच्या सावलीत’ का इंदौर से प्रकाशन। जुलाई २०१५ में पुणे से मराठी काव्य संग्रह, “विहान” का प्रकाशन। २०१६ में उपन्यास ‘मी होतो मी नव्हतो’ का प्रकाशन , एवं २०१७ में’ मध्य प्रदेश आणि मराठी अस्मिता” का प्रकाशन, मध्य प्रदेश मराठी साहित्य संघ भोपाल द्वारा मध्य प्रदेश के आज तक के कवियों का प्रतिनिधिक काव्य संकलन, “मध्य प्रदेशातील मराठी कविता” में कविता का प्रकाशन। अभी तक मराठी में कुल दस पुस्तकों का प्रकाशन।
८६ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन, चंद्रपुर (महाराष्ट्र) में आमंत्रित कवि के रूप में सहभाग। पुस्तकों में मराठी में एक काव्य संग्रह, ‘बिन चेहऱ्याचा माणूस खास’ को इंदौर के महाराष्ट्र साहित्य सभा का २००८ का प्रतिष्ठित ‘तात्या साहेब सरवटे’ शारदोतस्व पुरस्कार प्राप्त। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच इंदौर म. प्र. (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान, मराठी काव्य संग्रह “फेसबुक च्या सावलीत” को २०१७ में आपले वाचनालय, इंदौर का वसंत सन्मान प्राप्त। २०१९ में युवा साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा गैर हिंदी भाषी हिंदी लेखक का, बाबूराव पराड़कर स्मृति सन्मान वर्ष २०१९ हेतु प्राप्त। दिल्ली, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, इटारसी, बुरहानपुर, पुणे, शिरूर, बड़ोदा, ठाणे इत्यादि जगह काव्यसंमेलन, साहित्य संमेलन एवं व्याख्यान में सहभागीता। 


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