मनोरमा जोशी
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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जीवन का अंतिम पहर,
चहुँ और बरस रहा कहर।
क्षण भंगुर है जीवन,
कब पंक्षी सा उड़ जाये,
सोच मन अतीत,
में खो जाता है।
कभी वर्तमान,
कभी भूतकाल,
मैं खो जाता है।
भरता हैं उडा़न,
तोड़ बंधन,
झरनों सा बहता।
गंगा की लहरों,
सा लहराता, हिलोर लेता,
बन पतंगा उड़ता,
कभी थमता नहीं।
कुछ कर गुजरने,
की प्रबल जिज्ञासा,
कुछ आशा अभिलाषा।
शब्दों से बुनता जाल,
आता है ख्याल,
अपनी यादें अमिट छाप,
जिससें सार्थक हो जीवन
यादों के झरोखें जहाँ हो,
भूलीं बिसरी सुनहरी,
यादें अपनी बातें
अपनी बातें।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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