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हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य

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रचयिता : विवेक सावरीकर मृदुल

अगवानी में लगे देश के मंच सारे
उसे राष्ट्र के माथे की बिंदी पुकारे
लगेंगे उसके सम्मान में जयकारे
हिंदी दिन पर देखें ऐसे ही नज़ारे
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परायेपन का बोझ ले विवाहित बेटी
निज घर आती  सहमती औ बौराती
पल सम्मानित, उपेक्षा युगों युगों की
मुखर हो बात कभी न ये कह पाती
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राष्ट्र भाषा का सपना आँखों में धारे
हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।।
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अंग्रेजीयत का रोमांच हमको भाता
हिंदीवालों को समझते गंवार भ्राता
यूं विश्वमंच पर ध्वज फहरा आते
और सालों उस भाषण के गुन गाते
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लेकिन अब भी हम अंग्रेजी के सहारे
हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।।

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.लेखिका परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल
जन्म :१९६५ (कानपुर)
शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा
हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये,
उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन।
संप्रति : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक कुलसचिव।

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