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एक पौधा बगिया का

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक)
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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आज सुबह बहुत दिनों के बाद परिवार के सभी सदस्य बागीचे में साथ बैठकर धुप सेंक रहे थे … तभी बबली भी बिस्तर से उठकर अपने बाबूजी की गोद में आ बैठी …. हंसी ठिठोलियों का दौर चल रहा था की बबली को देख काकी बोल उठी … अरे बबली अब उठी हो सोकर … इतनी देर कोई सोता है भला … कल ससुराल जाओगी तो वंहा यह सब नहीं चलने वाला … दादी ने भी काकी की बात का समर्थन किया … मै नहीं जाउंगी कोई ससुराल-वसुराल, यहीं रहूंगी अपने माँ-बाबूजी के पास … आप सब के बिना मै वहां कैसे रहूंगी … क्या आप मेरे बिना रह सकते हैं … संसार की रीत है ये सबको जाना होता है रुंआसी होकर काकी बोल पड़ी … तभी बाबूजी ने बबली से कहा अरे बबली तुमने जो पौधा पीपल के नीचे लगाया था उसे खाद पानी दिया या नहीं चलो देखें क्या हाल है उसके और दोनों पौधे के पास जा पहुंचे और उसे संवारने लगे … जाने क्या सोचकर पौधे को पानी देते हुए अचानक बबली बाबूजी से बोली बाबूजी क्यों न हम इस पौधे को यहां से निकालकर घर के आंगन में लगा दें … हॅसते हुए बाबूजी बोले तू भी बड़ी भोली है बिट्टो … यह पौधा बड़े जतन से लगाया है … हम रोज खाद पानी देकर उसे बड़ा कर रहे हैं … उसे धुप से बचाते हैं की कहीं मुरझा ना जाएँ और यह जमीन जो है जहां इसे लगाया गया है इसके बिना यह पौधा जीवित नहीं रह सकता यह जमीन ही उसका जीवन है इसे यहां से निकाला तो यह पौधा मुरझाकर मर जाएगा … यह सुन बबली की आँखों एक अजीब सी चमक आ गई और वह तालिया बजाते हुए बोली हाँ में समझ गई बाबूजी जैसे की मै नन्हा पौधा और आप मेरी जमीन हो ……. है …… ना …….. बाबूजी ……………?
बाबूजी का सर चकरा गया, आँखे छलछला उठी, अपना सर पकड़ कर जमीन पर बैठ गए और सोचने पर मजबूर हो गए बबली (पौधा) और अपने (जमीन) बारे में ….

परिचय : पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)
जन्म : ६ नवम्बर १९६९
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच
सम्पादक- hindirakshak.com हिन्दीरक्षकडॉटकाम
सम्पादक– divyotthan.com (DNN- दिव्य न्यूज़ नेशन)
सचिव- दिव्योत्थान एजुकेशन एन्ड वेलफेयर सोसाइटी
स्वतंत्र पत्रकार व व्यावसाइक छायाचित्रकार


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