माधुरी व्यास “नवपमा”
इंदौर (म.प्र.)
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एक पत्र देश के नाम
२६ मई २०२०
इंदौर(म.प्र.)
प्रिय देश,
सादर नमस्कार🙏🏻
तुम्हारी भूमि में जन्म लेकर मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम भी मेरे समान आदर्श नागरिक पा कर प्रसन्न होंगे। तुम्हे विदित हो कि इस धरा पर बड़े होते हुए मुझमे तुमसे प्रेम और आत्मीयता अनायास ही सहज रूप से पनप गई है। पिछले दो दशकों में समझ नहीं आता कि तुम्हारे विकास और उन्नति का जश्न मनाऊँ या तुम्हारे मौलिक गुणों के पतन का मातम मनाऊँ। उम्र के हर पड़ाव पर मैंने तुम्हारे साथ परिवर्तन को महसूस किया है। मेरे प्यारे देश तुम्हारा वो समय जब यहाँ की बेटियाँ, लाज शर्म में रहते हुए, बेख़ौफ़ सभी में अपनापन अनुभव किया करती थी। यहाँ के बेटे नैतिक रूप से संबल थे। यहाँ का हर नागरिक आपसी बंधन में मजबूती से बंधा था। भौतिक संसाधनों और सुख-सुविधाओं को पाने की होड में हे ! भारत आज जो तुम्हारे मौलिक गुणों का ह्रास हुआ है इससे मन द्रवित हो जाता है मेरा ! तुम जानते हो शांति, अमन, चैन के वो दिन जब इंसानियत ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी। हमारी भारतमाता सुनहरी मुस्कुराहट बिखेरती थी और तुम सोने कि चिड़िया नाम के बेटे थे उसके। मैंने तो उन दिनों कि तुम्हारी सुंदरता के चर्चे किस्सों के रूप में मेरी दादी माँ के श्री मुख से ही सुने है।
जब तुम संसार में “हिंदुस्तान” नाम से प्रसिद्ध हुए तो तुमने विश्व के लोगो को अपनी संस्कृति में मिला लिया और अन्य मानव संस्कृति को भी स्वयं में घोल लिया। फिर फ़िरंगियों ने तुम्हे बड़े प्रेम से “इंडिया” पुकारना शुरू किया। इस प्यार भरे नाम इंडिया की कैसी दुर्दशा लगातार २०० वर्षों तक की उसे पुस्तकों में पढ़कर ही मैं तो सिहर जाती हूँ। उस कठिन दौर में भी तुमने देशवासियों की आवश्यकता कि पूर्ति की। लोगों की मुलभूत जरूरतों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पूरा कर स्वयं के रक्षा-कवच में भारतीयों को महफ़ूज रखा।
तुम्हारे चालीस कोटी सपूतों ने हमारी भारतमाता को गुलामी की बेड़ियों से छुटकारा दिलाया था। आज गुलामी की जंजीरों को टूटे लगभग ७३ वर्ष हो चुके है। धीरे-धीरे दकियानुसी रूढ़ियों की जंजीरों से भी तुम आजाद होते गए। स्वतन्त्र हुए उन तमाम बन्धनों से जो तुम्हारे विकास की गति को अवरुध्द करते थे। विडम्बना इस बात की है कि डूब जाने के अंधे भय से तुम्हारे कुछ प्रतिशत रहवासियों ने उन टूटी जंजीरों को अब भी हाथों में थाम रखा है। जो तुम्हारी प्रगति चक्र को तीव्र नहीं होने देते।
स्वतंत्रता का मतलब उच्छृंखलता नहीं होती यह देश की युवा पीढ़ी नहीं समझ पा रही। अनुशासनहीन होते कुछ युवा तुम्हे खुशहाल नहीं रहने देते। दूसरी ओर यह युवा शक्ति गर्व से तुम्हारा भाल ऊंचा भी उठती है। जब वह अपने कौशल से विश्व को चकित कर देती है। वह भी एक दौर था जब तुम्हारे टुकड़े सम्प्रदाय के नाम पर किये गए और तुम! सहर्ष दो हिस्सों में बंट गए ताकि मानवता आहत ना हो। परन्तु जब अब भी क्षेत्र और भाषा मे नाम पर तुम्हे विभाजित करने का प्रयास किया जाता है तो विभाजन का दर्द फिर से उभरने लगता है। आतंकवाद और नक्सलवाद को तुम अपनी देह पर सहते हो तो देशभक्तों के मन मे तुम्हारी तकलीफ से हूक-सी उठती है। तुम्हारा हृदय भी विपन्न हो जाता होगा ना! पर तुम बोहोत बहादुर हो बुराइयों के सर कुचलने में! तुम्हारी तो मिट्टी में ही एकता और अपनेपन की सुगंध है, इसलिए तुम्हारा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।
आज वैश्विक महामारी का बड़ा कठिन दौर है। इसके प्रभाव से तुम भी बीमार हो गए हो, पर तुम चिंता मत करो, हम सब देशवासी मिलकर तुम्हे इस कष्ट से बचा लेंगे। मेरे प्यारे देश तुम सदैव अग्रणी और विश्वगुरु रहे हो, तुम्हारे प्रति गर्व का अनुभव होता है जब आर्थिक मंदी के इस विकट वैश्विक दौर में भी तुम अपने पैर मजबूती जमाकर सम्पूर्ण विश्व मे सर बुलंद कर खड़े हो। विश्वास रखो मेरे प्यारे ! वैश्विक खेलों में तुम फिर विजय का जयघोष करोगे, विकास के नए आयाम स्थापित करने में लिए आकाश का सीना चीरकर फिर अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित करोगे। स्वस्थ, सम्पन्न और पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो जाओगे। संसार के विकास की दौड़ में नम्बर वन का खिताब पाओगे।तुम्हारी प्यारी धरा पर मुझे बड़ा अपनापन लगता है। तुम्हारी भूमि देवभूमि है और इसमे जन्म लेकर मैं खुद को धन्य मानती हुँ।
तुम्हारी अपनी
माधुरी व्यास “नवपमा”
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परिचय :- माधुरी व्यास “नवपमा”
निवासी – इंदौर म.प्र.
सम्प्रति – शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत)
शैक्षणिक योग्यता – डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य)
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