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घर की शान बेटियां

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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निकालिये अपने मन से हर एक बुराई को,
आजसे ही बनिये एक जासूस बिना तन्खा के,
नौकरी करिए साहब इन बेटीयो को बचाने की।
नौबत ना आये इनको भूखा सुलाने की,
नौबत ना आये इनको ज़िंदा जलाने की।।

ये बेटियां बुढ़ापे तक साथ देती है।
मांगती केवल लाड़ प्यार आपका,
इसके सिवा भला और क्या लेती है?

ये बेटियां आपके घर से निकलकर,
दुसरो के घर को खुशहाल बनाती है।
खुद तकलीफ सहकर सबको हंसाती है,
मगर अपना दर्द किसी को नही बताती है।।

कभी कूड़े के ढेर में मिलती है,
तो कभी दहेज की पीड़ा सहती है।
मां, बहन, बेटियां, बहु ही है जो देश मे,
आपके नाम को बढ़ाने में सबसे आगे रहती है।।

घर की शौभा, घर का रूतबा
घर की शान होती है बेटियां।
मजबूर पिता गरीब परिवार का,
एक अभिमान होती है बेटियां।

बहु-रूपी बेटियों से चलता है वंश आपका,
गांव नही, कस्बा नही, नगर नही, शहर नही।
अरे पूरा का पूरा हिंदुस्तान होती है बेटिया।

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लेखक परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है। गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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