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सहरा में चलते चलते

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कंचन प्रभा
दरभंगा (बिहार)

सहरा में चलते चलते
तन्हा जब थक गये हम
जहनो दिल पर कोई
तिशनगी गुजरने लगी
बारहा ऐसा होने लगा
और एक अजाब सा आया
सहरा के इस धुँध में
उनकी सूरत दिखी तो
चाँद वहाँ रौशन हुआ
वह दास्ताँ बन गया
याद नहीं कब उनके ख्वाब
मेरी आँखो में मुनब्बर हो गये
और बरस पड़े दो बूंद
सुखे सहरा की गलियों में
पता नही फिर कब
सहर हुई कब रात हो गई
चलते चलते सहरा में
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परिचय :- कंचन प्रभा
निवासी – लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार

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