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मैं ही राम, मैं ही रावण

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जीत जांगिड़
सिवाणा (राजस्थान)

हां रावण हूं मैं रावण हूं,
धर्मशास्त्र का परमज्ञाता,
शिव उपासक ब्राह्मण हूं,
हां रावण हूं मैं रावण हूं।

कुटिल नहीं मैं सरल हूं,
अमी की धारा अविरल हूं,
नहीं अपना मैं हित साधता,
शिव को ही मैं श्रेष्ठ मानता,
अनुशासन की मूरत अटल,
परम धर्म परायण हूं,
हां रावण हूं मैं रावण हूं।

मैं हूं चार वेदों का ज्ञाता,
तांडव स्तोत्र का रचयिता,
मेरा बल मेरी ही शक्ति,
प्रिय शंकर को मेरी भक्ति,
मैं साहसी, मैं पराक्रमी,
शास्त्र शस्त्र का मैं दर्पण हूं,
हां रावण हूं मैं रावण हूं।

मेरा राज था मेरी ही लंका,
चहुंओर था मेरा ही डंका,
फिर भी सीता का कभी,
किया नहीं चरित्र कलंका,
स्वयं की मुक्ति के हित में,
राम को युद्ध निमंत्रण हूं,
हां रावण हूं मैं रावण हूं।

बार बार न मुझे बनाओ,
बार बार न मुझे जलाओ,
अगर राम तुम बन न पाओ,
रावण ही बनकर दिखलाओ,
संयम मुझ सा बरत बताओ,
फिर बोलो कैसा रावण हूं,
हां रावण हूं मैं रावण हूं।

 

लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा

निवासी – सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान)

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