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धरा सी मैं

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प्रेक्षा दुबे
उज्जैन ( म. प्र.)

इस धरती सा हृदय लिए
कुछ इस जैसी मैं जीती हूँ
बाहर हो गर बारिश भी
फ़िर भी अंदर से जलती हूँ
कोई मेरा नहीं जहां मे
सबकी अपनी सी लगती हूँ
जो धूप सभी को मिल जाए
तो सूरज से मैं तपती हूँ
मेरे रहस्य हैं जग से परे
इतिहास सभी का रखती हूँ
सुख दुख त्याग सभी मैं अपना
कष्ट मैं सारे सहति हूँ
ना आम कोई ना खास मुझे
सब पर ममता मैं रखती हूँ
पर पाप जहाँ में जब भी बढ़े
तो प्रलय रूप मे धरती हूँ
कोमल सा मैं मर्म लिए
स्त्री स्वरूप मैं पृथ्वी हूँ

लेखिका का परिचय :- प्रेक्षा दुबे
निवासी – उज्जैन ( म. प्र.)

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