Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

हिचकिचाहट

***********

केशी गुप्ता
(दिल्ली)

संजय और नीलम रिश्ते में यूं तो एक दूसरे के कुछ नही लगते थे, पर एक ही बिरदारी से थे . बस इसी नाते आपस में जान पहचान थी . फिर एक बार किसी करीबी रिश्तेदार के यंहा, उनके बेटे की शादि में नीलम का जाना हुआ . इतफाक से वंहा संजय भी आया हुआ था .
शादि से पहले की भी कई रस्में होती है, जैसे महंदी, सगन इत्यादि .  बाहर से आने वाले सभी अतिथी तीन , चार दिन का प्रोग्राम बना कर आए हुए थे . नीलम और संजय भी चार दिन के लिए दिल्ली से जयपूर पहुंचे थे . एक ही शहर के होने के बावजूद भी कभी दोनों का आमना सामना नही हुआ, पर यहां शादि के इन चार दिनों में वह एक दूसरे के बेहद करीब आ गए . दोनों को यूं लग रहा था जैसे वह एक दूसरे को बहुत पहले से जानते और समझते है .  चार दिन का समय अच्छे से गुजर गया . वक्त का पता ही नही चला फिर वापसी की उड़ान भरने का समय आ गया . दोनो ने एक दूसरे का नम्बर लेते हुए फिर मिलने की इच्छा जाहिर करते हुए अलविदा ली . दोनों अपनी अपनी गाड़ी से आए थे .  संजय के साथ उसका दोस्त भी था और उनका जयपूर से अजमेर जाने की प्रोग्राम था .
नीलम घर पहुंच तो गई  मगर उसे लगा जैसे उसका पीछे कुछ छूट गया, उसे अधूरापन सा महसूस हो रहा था .  रात बिस्तर पर लेटे भी बेचैनी महसूस हो रही थी .  रह रह कर संजय और उसकी बातें उसे सता रही थी . उसे संजय के फोन का इंतजार था , मगर फोन नही आया .  एक हफ्ता बीत गया और फिर  महीने .  नीलम को लगा संजय उसे, उस पल दो पल के साथ की तरह भूल गया . खुद फोन करने में वह हिचकिचाती रही .
फिर एक दिन अचानक नीलम और संजय का एक रस्ट्रां में आमना सामना हुआ . नीलम अपनी सहेलियों के साथ और संजय एक सुंदर व्यक्तित्व की महिला के साथ था . नीलम को देखकर संजय आगे बड़ा और मुस्कुरा कर बोला “कैसी हो नीलम” ?  ठीक हूं, नीलम ने जवाब दिया . तुम कैसे हो, मुझे लगा तुम मुझे भूल गए . नीलम ने कटाक्ष भरे स्वर मेें कहा
नही ऐसा नही है, तुम्हारे फोन का बहुत इंतजार किया .  फिर लगा शायद तुम मिलना नही चाहती, संजय ने उतर दिया .
खुद पहल करने में हिचकिचाहट थी कि कहीं तुम गलत न समझ लो
इतने में संजय के साथ आई स्त्री भी उनके समीप आ गई .  इन से मिलो, ये मेरी पत्नी कल्पना है .  पिछले महीने ही माता-पिता की इच्छा से शादि हुई है .  नीलम ने दोने को मुबारकबाद  देते हुए घर आने को कहा और फिर अल्विदा लेते हुए अपनी सहेलियों के साथ बाहर आ गई . मगर मन में एक ही सवाल था, आखिर क्यों हिचकिचाते रहे और एक दूसरे से सदा के लिए दूर हो गए .
काश उसने या संजय ने बिना किसी हिचकिचाहट के मन की बात मान, फोन कर लिया होता तो एक दूसरे को पा लिया होता

लेखक परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका
निवास – द्बारका, दिल्ली


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *