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एक बरस बीत गयो

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जीतेन्द्र कानपुरी

मौसम गरम गयो, सरद जीत गयो।
एक बरस बीत गयो।।
कथरिया धोउन लगी अम्मा
पयॉर बापू लाये।
साल निकारो, सूटर
और जूता मोजा लाये।।
मफलर की कही ती
सो न ल्या पाये।
बापू बाजार गये
मफलर ही भूल्याये।।
सो साफी बॉधयो
कछु दिन काट्हों।
जा दिन बाजार गयो
ऊ दिन लै आ हों।।
मौसम गरम गयो, सरद जीत गयो
एक बरस बीत गयो।।

लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ।
बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरमापुर पुलिस द्वारा, प्रकाश महिला डिग्री कॉलेज द्वारा, कैबिनेट मंत्री कानपुर द्वारा, बजरंग दल द्वारा, राज्सभा सॉसद द्वारा उत्तराखण्ड कवि सम्मेलन का महामंत्री पद सौपा गया, लखनऊ कवि सम्मेलन से सम्मानित किया गया। दिल्ली प्रगति मैदान मे इस प्रकार से तमाम छोटे बडे मिलाकर कुल १८ जगह से जीतेन्द्र कानपुरी सम्मानित हुऐ है, अब तक जीतेन्द्र कानपुरी जी ने २५०० कविताये और शायरी लिख डाली है। इनकी प्रथम पुस्तक -“विद्यार्थियों पर टिका देश का भविष्य” जिसके लेख तमाम अखबारों से प्रकाशित हो चुके है।


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