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भीगे थे तेरी मोहब्बत में हम

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मित्रा शर्मा

भीगे थे तेरी मोहब्बत में हम
वह कागज की तरह
जलने में काम आया न लिखने में
.
खुले आखों से सपने देखे थे हमने
न साकार हुए न ओझल हुए
.
अजनबी सी तुम्हारी खामोशी के
साये में पलते रहे
वीरान मरुस्थल की तपती रेत
पैरों को जलाते रहे।
.
आहत करती वह लफ्जों को
अनवरत सहते रहे
और जख्मों के निशान पर
नमकीन करते रहे।
.

परिचय : मित्रा शर्मा – महू (मूल निवासी नेपाल)


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