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लाचार देखता रहा

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प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)
(मुजफ्फरनगर)

हसरतों को उम्रभर लाचार देखता रहा
इस किनारे से फकत उस पार देखता रहा
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बेहद करीब आ के,वो पास से गुज़र गया
मैं उसकी गुमशुदी का इश्तहार देखता रहा
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जीत कर अहले जँहा को लौट आया वो मगर
मुझपे होगी कब फतह इंतजार देखता रहा
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देखकर उसनें मुझे इक बार क्या जादू किया
आईने में ख़ुद को बार बार देखता रहा
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गिरवी रखकर फिर कभी आया ना वो मुझको नज़र
बिकता रहा हूँ रोज़ मैं बाज़ार देखता रहा
.
अपनें हाथों ही जलाकर ख़ुद को तु “शाफिर” यहाँ
हसरतों की लाश का अंबार देखता रहा

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लेखक परिचय :-  प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)

ग्राम- सौंहजनी तगान
जिला- मुजफ्फरनगर
प्रदेश- उत्तरप्रदेश

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