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देहाड़ी

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केशी गुप्ता (दिल्ली)

हथौड़ की चोट से सारा महौल्ला गूंज रहा था .  तपती दोपहर में गोपाल देहाड़ी पर  लगा हआ था . एक पुराना घर गिरा कर नई तीन मंजीला ईमारत बनाई जा रही थी . गोपाल और उसके साथी अब्दुल को इस पुराने ढांचे को तोड़ने का काम मिला था . गोपाल को कुछ हल्का सा बुखार भी था पर वह आराम नही कर सकता था . आखिर गरीब का घर दिन भर की देहाड़ी से ही तो चलता है .  बुखार की वजह से तेज चमकता सूरज आज उसे परेशान कर रहा था  वरना ये तो उस जैसे मजदूर का रोज का काम है . अब्दुल ने गोपाल के सुखे होंठ और बहते पसीने को देख कहा भाई” थोड़ी देर आराम कर लो,  पानी पी रोटी खा कुछ देर लेट जाओ यहीं कहीं छाया में” . मै तो कर ही रहा हूं काम और कौन सा आज ही ढह जाएगा ये ढांचा और कल नई ईमारत खड़ी हो जाएगी .   जान नही प्यारी क्या ? ठेकेदार के आने में अभी वक्त है .
गोपाल हांफ रहा था .   सो अब्दुल  की बात सुन छाया में जा बैठा आख़िर करता भी क्या बुखार और तेज धुप के कारण हिम्मत जवाब दे रही थी .  रोटी भी ला ना सका था .  तभी सामने के घर से एक लड़की कुछ खाने का सामान लिए हुए आई और बोली” बाबा आज घर में पिता जी के श्राद की पूजा थी ,  ये प्रसाद है आप दोनों खा लिजिएगा “.  गोपाल मन ही मन सोच रहा था की आज इस श्राद के प्रसाद ने उसे बचा लिया वरना बुखार और भूख के चलते उसका श्राद हो जाता .  अब्दुल गोपाल के मन की बात भाप उसकी तरफ देख हल्का सा मुस्कुरा उठा . ” बेटी इस गरीब को बुखार है , हो सके तो कोई बुखार की गोली भी दे दो “अब्दुल ने लड़की की ओर देखते हुए कहा . जी अच्छा, थोड़ी ही देर  में वह लड़की गोपाल को बुखार की एक गोली दे गई .
खाना खाने और गोली के असर से गोपाल का बुखार उतर गया . ” कैसी विडंबना है ?”  बड़ी बड़ी इमारतो को खड़ा करने वाले हम जैसे मजदूर  कितने लाचार और मजबूर हैं , गोपाल ने कहा . हां मगर इंसानियत मरी नही आज भी ,  अल्लाह अपने बंदो की खबर रखता है , अब्बदुल मुस्कुराते हुए बोला . दोनो काम पर लग गए ! शाम ठेकेदार आया और देहाड़ी दे कर चला गया .

लेखक परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका
निवास – द्बारका, दिल्ली


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