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मैं सावन के गीत लिखू पर

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रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर

मैं सावन के गीत लिखू पर
अभी लिखे ना जाऐंगे।
झूलों और मधु गीतों के
शब्द संवर ना पाऐंगे।।
मन में एक सैलाब उठा है
जन-गण-मन के क्रंदन  का।
भ्रष्टाचार से दूषित वायु
और मांटी के चंदन का।
आज भुजाऐं कवि की कंपित
और लेखनी बोल रही।
भारत मां के गद्दारों के,
छुपे राज वो खोल रही।।
नेताओं के वादे सुनकर
पाँच साल कब बीत चले।
इनकी मीठी चुपड़ी बातों के,
घट अब सारे रीत चले।।
रोड हमारी बनी नहीं,
पानी घर तक ना पहुँचाया।
किसको व्यथा सुनायें अपनी,
किसने हमको समझाया।
अपराधों को जन्म दे रहे
नित नूतन परिवेश में।
कल फिर बनकर आयेंगे
भाग्य विधाता देश में।।
जिसके कानो में जन की पीड़ा का,
दर्द अरे कुछ कहता हो।
किसी गरीब के आंख का आंसू ,
जिसकी आंखों बहता हो।।…
वही शास्त्री जैसा नेता
आज हमें नहीं दिखता है।
अपनी जेब को भरने वाला
सफेद पोश में दिखता है।।
नेहरू कट टोपी पहन
युवाओं की भीड़ जुटाते हैं।
जनता को धर्म नाम पर
सहज ही लूटे जाते हैं।।
भारत में तुमने जन्म लिया
कुछ भारत पर उपकार करो।
दौलत काम ना आऐगी इस
जन्मभूमि से प्यार करो।
प्यार करो वेदों से,
उपनिषदों से कुछ सीखो।
राम, कृष्ण के वंशज हो तुम
रावण जैसे मत दीखो।।
बैर, द्वेष और घृणा को छोड़ो
और तजो प्रतिकार को।
मानव का हित कैसे हो,
फैला इस व्यापार को।।
अगला जन्म पशु-पक्षी हो।
कुछ तो सोच विचार करो।
मानव हो मानव जैसे बन,
सदा सभी से प्यार करो।।

परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।


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