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बहक जाता था

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रचयिता : आशीष तिवारी “निर्मल

खिलता गुलाब थी, तू खिलता गुलाब है
सूरत तेरी लाजवाब थी, लाजवाब है।
तुझे देख के अक्सर बहक जाता था मैं
मेरी आदत खराब थी, आदत खराब है।
तू मीठे शहद सी थी, मीठे शहद सी है
तेरी कीमत बेहिसाब थी बेहिसाब है।
नशा छा जाता है जो तू पास से गुजरे
मनमोहक अदाएँ शराब थी शराब है।
कोई नही है मिसाल तेरी, बेमिसाल है
तू सच में माहताब थी, और माहताब है।
यूँ तुझको पाना है द्विवास्वप्न के जैसा
तुम एक ख्वाब थी और एक ख्वाब है।
रिश्ता सदा पाकीजा था हम दोनों का
सब खुली किताब थी खुली किताब है।

लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन- आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।


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