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बेटा लौट आया सुमित्रा का

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रचयिता : विनोद वर्मा “आज़ाद”

मैने ये कहानी सुन रखी थी कि कोई भी छोटी सी दुकान लगाकर बैठा है तो बड़े दुकानदारों से सामान लेने की बजाय नाम मात्र का सामान, सब्जी या फल बेचने वाले से खरीदना चाहिए, क्योंकि छोटी सी दुकान वाले के पेट भरने का साधन ही कुछ सामान, फल या सब्जी बेचना होता है। एक बुढ़िया की यही स्थिति देख एक सज्जन पुरुष रोज उस महिला से फल खरीदता था और फल का एक फल उस बुढ़िया को खाने को देते हुए कहता देखो फल ज्यादा मीठा तो है नही ? बुढ़िया को इसलिए खिलाता था कि ये तो बेचकर पेट की आग बुझाएगी पर इसमे से ये एक भी फल नही खाएगी। जबकि इसके जर्जर शरीर को इस बहाने फल का एक टुकड़ा कुछ तो असर करेगा। वहीं बुढ़िया फल खाकर कहती बाबू शाय ये तो मीठा है ! तो वह नित्य का ग्राहक कहता हां, मीठा ! अरे बहुत ही मीठा है माता राम। रोज इस प्रकार वह बुढ़िया को फल खिलाता, वहीं बुढ़िया भी उक्त सज्जन पुरुष का इंतजार करती और आने पर फल कुछ ज्यादा तोल देती। जब बुढ़िया से ज्यादा फल देने के बारे में पूछा तो उसने कहा मुझे तुममें मेरे बेटे का अंश दिखता है, कहकर उसकी आंखें छलछला आई। मैने पूछा- माताराम आपका बेटा कहाँ है, कुछ बताइये ना! तो उसने कहा अभी नही फिर कभी। तो मेरे मन मे भी उथल-पुथल मची की इस महिला के दिल मे बहुत बड़ा दर्द छिपा है, चूंकि आज मेरी छुट्टी थी, सो मैंने माताराम को अपनी कहानी सुनाने के लिए बाध्य कर दिया। माताराम ने टालने के प्रयास करते हुए आंखों पर साड़ी के एक पल्लू से आंसू पोछते हुए कहा बाबू शाय आपका कार्यालय का समय हो रहा है आप जाओ देर हो जाएगी अपने कर्तव्य स्थल पर समय से पहुंच जाओ। तो मैंने कहा- आज मेरी छुट्टी है और आपका दु:ख बाटने का प्रयास करूंगा। मुझे अपनी दास्तान तो बताएं ! ………
उसने शुरुआत की और कहा – “मेरा एक बेटा है, वह मेरा बहुत ध्यान रखता था। बचपन मे ही उसके पिता व दादा – दादी बादल फटने की वजह से घर सहित नदी में बह गए थे, जिनका आज तक पता ही न चला। मैं अपने मायके रक्षाबंधन पर आई हुई थी, उस समय मेरा बेटा मात्र २ साल का था। मेरे ऊपर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। हम सभी बहने राखी पर पिता के यहां इकट्ठा हुई थी, इस घटना ने मेरे पीहर वालों को जैसे तोड़ कर रख दिया। एक बच्चे की मां और भरी जवानी में विधवा होना, मां-बाप के सिर पर सवा मन बोझ जैसा होता है, सो पिता ने मुझे हिम्मत देते हुए जिंदगी की जंग को लड़ाई के मैदान जैसा मानकर मेहनत करने की प्रेरणा दी। चूंकि पिता को हमेशा कड़वे नीम के समान माना जाता है पर ये नही देखा जाता कि वह शीतल छाया प्रदान करता है। पिता की कही बातें मेरे लिए सम्बल प्रदान करने वाली रही।
मैंने मेहनत मजदूरी करते हुए बेटे के लालन-पालन में कोई कोर कसर नही छोड़ी।
अपने पति धर्म का निर्वहन करते हुए मैंने माता-पिता के हर उस प्रयास को विफल किया जो मुझे दूसरी शादी के लिए प्रेरित करना चाहते थे। कारण की मेरे बेटे को जो प्यार मिलना चाहिए उस पर मुझे संशय था। अगर मेरे बेटे को मन मुताबिक प्रेम नही मिला तो मेरा जीवन अंधकारमय हो जाएगा, मैं अपने पति की आत्मा को क्या जवाब दूंगी?
बस यही सोचकर मैंने दूसरी शादी नही की। धार्मिक प्रवृत्ति की उस महिला ने गम्भीरता से सोचकर यह फैसला लिया था। समय काटता चला गया, बेटे को अच्छा पढा लिखाकर उसे डॉक्टर बना दिया। उसे विदेश जाने का अवसर मिला। और वह वहीं का होकर रह गया। उसने गोरी मेम से शादी कर ली।
उसकी पत्नी उसे घर जाने से हमेशा रोकती रही, मां के बारे में उसे किसी भी प्रकार  की जानकारी नही मिल पा रही थी। पहले दो चार टेलीग्राम आये पर अब कोई खेर खबर नही है।
फिर भी मैं अपने बेटे के लिए कुछ न कुछ पैसे बचा कर बैंक में रख देती हूं। मुझे दो रोटी सुबह २ शाम को चाहिए बस ! मैं सांई मन्दिर की भोजन शाला में जाकर दोनों समय भोजन पा लेती हूं,बस !
दिनरात मेरे बेटे और उसके परिवार की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना करती रहती हूं।
मैंने कहा माताराम जो बेटा आपको भूल गया उस  बेटे के लिए धन जमा करने का क्या औचित्य ? तो बीच मे ही माताराम बोल पड़ी, “मैं मां हूं, बेटा कैसा भी हो, वह होता तो बेटा ही ना! उसे कोई परेशानी होगी जो मेरे से सम्पर्क नही कर पा रहा। गोरी बहूँ उसे परेशान करती होगी, बच्चों की पढ़ाई व मरीजों के सेवा में ही उसका समय निकल जाता होगा ? इसलिए मुझे वह तार नही कर पा रहा होगा ? आदि-आदि मन समझाने वाली बातें एक माँ कर रही थी।
मैं माताराम की ये बातें सुनकर सन्न रह गया। सोचा “कि जन्म देने वाली मां के लिए बेटा कैसा भी हो बेटा तो बेटा होता है, उसके मन के उद्गार व उसका प्यार देखकर, तथा पिता को कड़वे नीम के समान समझकर शीतल छाया प्रदान करने वाला कहकर मेरे भी मन मे हलचल पैदा करदी। क्योंकि मेरी माँ ने बचपन मे ही आंखे मूंद ली थी, पिता व दादा-दादी मुझे बड़े लाड़-प्यार से पाला था। दादा-दादी मुझ पर हमेशा मेहरबान रहते पर पिता जी हमेशा पढ़ने-लिखने का दबाव बनाते, आवारा बच्चों के साथ देखते तो डांट-फटकार लगाते, मुझे उनका व्यवहार हमेशा गलत लगता था। पर एक मां के मुंह से पिता नीम सा कड़वा लगता है पर वह शीतल छाया का प्रदायक होता है सुनकर मेरी आँखों मे आंसू छल- छला आये। माताराम ने मेरी आँखें खोल दी। मैं पिता की सख्ती को गलत रुप में लेता रहा। मेरे मन मस्तिष्क में पिता का प्यार उनकी डॉट सब उभरने लगे। मुझे साइकिल उधार लाकर दी थी, जिसका कर्ज काफी समय तक पिताजी ज्यादा समय काम करके चुकाते रहे। मां से भी कहते, मैं उसके सामने ऐसे गुस्से में कहता हूं ताकि वह बिगड़े नही और दोस्तो की सोबत में रहकर वह फालतू की फरमाइश न करे। बस!
वह मेरा बेटा है उसे सिर ऊंचा करके जीने के लिए थोड़ा सख्त होता हूँ, पर मन मेरा भी दुखता है उस पर सख्ती करते वक्त।
मैं पिताजी को आज तक समझ नही पाया पर माताराम ने मेरी आँखें खोल दी। उसने अपनी आंखों में छल-छला आये आंसुओं को पोंछकर माताराम के पैर पड़कर चल दिया अपने पिता से माफी मांगने और उनकी सेवा करने, क्योंकि माता के देहांत के बाद वह पिता को छोडकर जब से आया था तबसे आज तक उनकी कोई सुध नही ली थी।
डॉ.शेखर अमेरिका के टेक्सास शहर में एक बड़े अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ बन गये थे। वे एक फोन आने पर एक मल्टी में नेत्रदान की गई महिला के नेत्र निकाल लाने गए थे। उन्होंने दरवाज़े पर दस्तक दी, अंदर से आवाज़ आई कम इन…
डॉ.शेखर ने देखा पति-पत्नी टीवी देख रहे थे साथ ही शराब की चुस्की भी लेते जा रहे थे। मैंने परिचय दिया मैं डॉक्टर तो उन्होंने इशारे में कहा, यस, पास के कमरे में लाश पड़ी है, नेत्र निकाल लो। डॉक्टर शेखर ने कमरे में प्रवेश किया, वैसे ही पत्नी बोली रुकिए डॉक्टर चादर खराब हो जाएगी, मुझे चादर हटा लेने दीजिये। मैंने कहा- इसमे खून नही निकलता है, चादर साफ रहेगी। तो महिला ने पहले चादर निकाली फिर मुझे नेत्र निकालने दिए। मुझे यह दृश्य बहुत दर्दनाक लगा। बेटे-बहूँ का माँ व सास के प्रति यह व्यवहार मेरे मस्तिष्क पर हथौड़े के समान चोट करने वाला लगा। भारतीयता और पश्चात्यता में आज मुझे अंतर नज़र आने लगा। वहां प्यार ही प्यार है और यहां… मुझे भी अपनी मां की याद आने लगी। मेरा मन मेरी माँ के लिए तड़प उठा, पश्चिम के लोगों का व्यवहार नागवार लगा। मुझे मां की याद आने के साथ बचपन की वह हर घटना सिर पर हथौड़े चला रही थी। मैं तो माँ के प्यार को गोरी पत्नी के प्रेम में भूल ही गया था। मेरी माँ कैसी होगी ? क्या करती होगी ? कैसे उनका जीवन निर्वाह हो रहा होगा ? सोच-सोचकर हैरान-परेशान हो रहा था। अस्पताल से घर गया और पत्नी को हिंदुस्तान चलने के लिए बाध्य कर दिया। साथ ही कह दिया नही चलोगी तो मैं ही चला जाऊंगा और फिर कभी वापस नही आऊंगा …
गांव की पुरानी बस्ती में पहुंचकर मां की जानकारी ली, पता चला वह झोपड़ी में ही है। वहां जाकर देखा एक अधिकारी सा लगने वाला व्यक्ति मां के हाथ थामे दिलासा दे रहा था माताराम आपने मुझे मेरे पिता से मिलवा दिया, ईश्वर आपके बेटे से आपको जरूर मिलवाएंगे। झोपड़ी के बाहर हलचल हो रही थी आवाजे आने लगी क्यों रे शेखरया कां था अब तक ? तेरी मां तो तेरी राह तक-तक अंतिम सांसे ले रही है !
मां के कानों में शेखरया नाम पहुंचा तो वह उठ बैठी और बोली मेरा शेखरया आ गया बाबू शाय…. मेरा शेखरया आ गया। झोपड़ी में घुसते ही उसने मां की स्थिति देखकर रुआंसा होकर पैरों में गिरकर माफी मांगने लगा और पश्चाताप करते हुए, अब यही रहूंगा कहीं नही जाऊंगा कहते हुए, दहाड़े मार रोने लगा…मां ने बेटे के सिर पर हाथ फेरा और निढाल हो गई…..हाथ झटके से गिर गया और…..
मातम पसर गया। वह मां प्रेम का प्याला थी जो, जीती जागती जन्नत थी चली गई माताराम-सुमित्रा….

लेखक परिचय :- 
नाम – विनोद वर्मा
सहायक शिक्षक (शासकीय)
एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. अगस्त २०१९ तक हो जाएगी।
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान 
१७.- मालव रत्न अवार्ड २०१९ से सम्मानित।
१८.- २ अनाथ बेटियों को गोद लेकर १२वीं तक कि पढ़ाई के खर्च का जिम्मा लिया।


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