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रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित
सज़ी कलाई राखी से, रह रह कर याद दिलाती है।
बहनों का प्यार निराला है, आँख आज भर आती है।
बहन बड़ी हो या छोटी, ज़ज्बे में सदा बडी होतीं।
दुख कैसा भी घनघोर रहे, सन्मुख सदा खड़ी होतीं।
रक्षाबंधन के अवसर पर ही क्यों याद करें केवल उनको।
ये रिश्ता है अनमोल जगत में, बतलाना होगा जनजन को।
है संयोग आज इस दिन का, संगम ख़ास पुनीत हुआ।
पन्द्रह अगस्त, रक्षा बंधन, तीजा, कश्मीर स्वतंत्र हुआ।
तीन तीन त्योहारों की,,,,,,,,, शान बहुत अलबेली है।
नहीं कलाई है सूनी, ,,,,,,,,,,,बहन न कोई अकेली है।
भारत माता की जय बोलो तब बस इतना आभास रहे।
हो तुम्हें मुबारक़ पर्व तीन,,,,,,,,,हर्ष और सौगात रहे।
भारत माँ के मुखमंडल पर,,,नहीं वेदना कोई भी है।
बहुत दिनों के बाद आज माँ,शायद खुश होकर सोई है।
हो नमन राष्ट्र के नायक को, और लौह पुरुष को नमन करो।
जो आँख दिखाये शत्रु कहीं भी, शक्ति से उसका दमन करो।
केसर की क्यारी महक़ रही, बहनों को भी अधिकार मिला।
आतंकी सदमें में हैं सब,,,,है छिन्न भिन्न मज़बूत किला।
महबूबा, उमर, गिलानी के अश्रु निरन्तर बहते हैं।
परतंत्र हुए निज कर्मों से, मानसिक वेदना सहते हैं।
कांग्रेस का पतन समझिए,,,शतप्रतिशत मत भृष्टि हुई।
भौंक रहे आज़ाद सदन में, देश भक्ति अब कहाँ गई?
घूँघट से निकले चाँद वहाँ, उन्हें बहनों का दर्ज़ा दिया करो।
अश्लील टिप्पणी करके तुम, अपयश मत सर पर लिया करो।
सावन की झड़ी बताती है,,,,,,,,रोम रोम आनंदित है।
आज कलाई बिजू की,,,,,ख़ुशबू से हुई सुगंधित है।
परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।
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