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सरहद

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रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर

सरहदों पर खड़ी, यह बर्फ की दीवार।
देश का समर्पित,शहीदों का परिवार।
हर क्षण-क्षण के पहरेदार यह हैं।
सहते गिरते तुफानो के वार यह है ।
चट्टानों से अटल खड़े हैं।
सैनिक सीना तान खड़े हैं।
प्रेम,संवेदनाओं का समर्पण कर,चारो प्रहर डटे खड़े हैं।
वतन की रक्षा की खातिर सीने पर कई वार सहे हैं।
मुश्किलों को पार कर।
देश की ये आन बने है।
शीतल लहरों की मार यह सहते।
हमको चैन की नींद ये देते।
फिर भी आँखे खोल खड़े हैं।
सजगता की मिसाल बने हैं।
भारत का गौरव,अभिमान रहे है।
सम्मान करो मातृभूमि के इन लालो का।
शूरवीर जो माँ ऐ है,इनकी।
सच्ची देशभक्ति का पुंज बनी है।
नमन देश के उन परिवारों को।
देश की खातिर बेटो की कुर्बानी देकर।
चेहरे पर मुस्कान लिए है।

 

परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि :
५.९.१९७०
लेखन विधा :
लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा :
एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:-
बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद, 
कविताएं :-
वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन :
भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान :
“भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा


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