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विरह की ज्वाला ने

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रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर

कहीं विरह की ज्वाला ने,
मेरे अंतस से निकस
तुम्हारे मन में डेरा डाला होगा।
आह!  आज दिन काला होगा।…।
तुमने तो मुड़कर नहीं देखा,
शब्दों में बस भाव पिरोए।
यादों में नीरस गए सावन,
नैन, मेघ बन दिन भर रोए।।
क्या-क्या स्मृति लाऊं तुमको,
आह!  रुदन में हाला होगा।…।
उस पथ पर मैं आज खड़ा हूँ
जहां चैन पाते थे नैना।
निरख-निरख कर भेद छुपाते,
नहीं बताते थे मन बैना।।
ऑखो में पल तैर गए हैं,
आह! हृदय मतवाला होगा।…।
अंदर तक झकझोर रही है,
धड़कन भी सहमी-सहमी है।
अब तक कह पाये ना तुमसे,
आज मगर, कहनी-कहनी है।।
पिछले जन्मों का कुछ तूने,
आह ! नेह संभाला होगा।…।।

परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।

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