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है बहुत कुछ मगर…

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रचयिता : नेहा राजीव गरवाल

है बहुत कुछ… मगर देखा नही जा सकता,
महसुस किया जा सकता है मगर,
महसुस किया नही जाता।
राते अंधेरी होती है !! मगर…..
मंजिल के मुसाफिरो के लिए,
ये किसी रोशनी से कम नही,
ये जो लमहा गुज़र रहा है ना यार,
ये भी किसी मंजिल को पाने के लिए कम नही।

मुश्किलें है……हज़ारो होती है मगर,
मंजिल से हार जाने से बडा….और कोइ गम नही।
हालाते बस सताती है यारो!!
इनसे बहक जाना…..हमारा मकसद नही।
आलसय आबाद है मगर,
आलसय और मंजिल का,
को……इ मेल नही।
चाहे तो आज कर दिखा सकते है यारो!!
मगर, कल करने वाले भी कम नही।

सोच तो बेमिसाल है मगर,
बस!!! सोचते ही रहना……
मंजिल तक का रास्ता नही,
सोचते तो कई है यारो!!
मगर अपनी सोच के मुकाम न दे पाने  वाले भी…….
इस दुनिया मे कम नही।

लेखीका परिचय :-  नाम – नेहा राजीव गरवाल दूधी (उमरकोट) जिला झाबुआ (म.प्र.)

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