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पिता

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रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर

पिता सार हैं, सृष्टि का आधार हैं।
जीवन में हर कदम पर।
एक सशक्त ढ़ाल है।
उनकी कल्पना बिन, जीवन सुना विरह का जाल है।
पिता कर्तव्यों की खान है।
पिता का छत्र महान हैं।
पिता आशा है, जीवन की परिभाषा है।
पिता क्रोध है, त्याग है, खामोश एहसास है।
पिता का स्नेह निष्छल अपार है।
शिक्षा, सम्पन्नता का भरा- पूरा द्वार हैं।
पिता से सजता हर त्यौहार है।
पिता आँगन की खुशी, माँ की चूड़ी, रंगों की बहार हैं।
पिता तो पिता हैं, घर के पालनहार हैं।
पिता सुखों की, ममता की, प्रेम की बहार है।
पिता को स्नेह वंदन बार-बार हैं।

परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि : ५.९.१९७०
लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,,
कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान : “भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा

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