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रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर

आज उमा जीवन के अंतिम पड़ाव के साथ आश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। कल ही उसका चश्मा टूट चुका था। दो दिनों से अपनी समस्या को आश्रम संचालक को बयां कर चुकी थी। किसी के पास इतना समय नही था। कि उसकी समस्या का समाधान करें। कमजोर आँखों से वह उठी। धुंधलाई नजरो से अपने जर्जर शरीर को संभालते हुए बाहर आई। अभी कुमुद ने देखा की बिना चश्मे से उमा को देखने मे परेशानी हो रही हैं, तभी कुमुद ने आगे हाथ बढ़कर उसको सहारा दिया। ओर मुस्कुराती हुई “बोली उमा अब  यहाँ किसकी आस रखती हो  हमारा यहाँ कोई नही है, जब तक हम यहाँ है, हमे ही एक दूसरे का साथ  देना होगा। कहकर अपने को उम्र से कम समझकर उसका हाथ थाम दोनों बिना दाँतो के एक प्यारा सा ठहाका लगा उठी। दोनों को मुस्कुराहट बहुत ही प्यारी ओर सलोनी लग रही थी।

परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि : ५.९.१९७०
लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,,
कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान : “भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा

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