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जानलेवा तम्बाकू का सेवन

रचयिता : विनोद वर्मा “आज़ाद”

विश्व मे ८० लाख लोग प्रतिवर्ष तम्बाकू सेवन के पश्चात होने वाले असाध्य रोगों की वजह से काल के गाल में समा रहे है, वही भारत देश मे प्रतिवर्ष १० लाख लोग जान गंवा रहे है।
      विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ विश्वभर के राष्ट्र और समाजसेवी संगठन तम्बाकू के सेवन से होने वाले रोग और होने वाली मौतों से बचाने के लिए विश्वव्यापी अभियान चलाए हुए है। इतना कुछ होने के बावजूद लोग इस कचरे को खाना नही छोड़ रहे है। इसके बनाये उत्पादों पर स्पष्ट चेतावनी लिखी होने के पश्चात भी इसका सेवन करने वालों की संख्या में कमी ना के बराबर हो रही है।
     मैं दो घटनाएं और तम्बाकू के उत्पादन के बारे में बताने जा रहा हूँ, घटनाएं तो दिलचस्प है पर उत्पादन गन्दगी से सराबोर……
       मैं कक्षा तीसरी का छात्र था, मेरे समाज बन्धु और पुराने घर के सामने वाले जो मेरे साथ पढ़ रहे थे, मुझे बड़े प्यार से मीठी बातें करके खाड़ी की पुलिया पर विश्रान्ति समय  में ले गए। वहां जाकर उन्होंने तम्बाकू की डिब्बी निकाली और अपनी हथेली में लेकर चुना तर्जनी से निकलकर हथेली में लगा कर तम्बाकू को रगड़-रगड़ के उसे नीचे वाले होठ के अंदर दबा लिया। मुझे भी ऐसा ही करने के लिए तम्बाकू के अच्छे गुण बताते हुए खाने का कहा। मैंने वैसा ही करके तम्बाकू को होठ के अंदर दबा लिया। चक्कर आने लगे, घर गया खाना खाया तो होठ में जलन होने लगी।
     दूसरे दिन फिर मध्यांतर में साथ ले जाकर वही क्रिया दोहराई। मुझे फिर चक्कर व होठ में जलन के साथ मुंह से दर्गन्ध भी आई।
     तीसरे दिन मैं आधी छुट्टी के पहले ही घर चला गया, फिर क्लास लगने के बाद आया, तो वह छात्र मुझसे कहने लगा क्यों कहाँ गया था? तम्बाकू खाने नही आया व धमकाने जैसी बात करने लगा तो मैंने छूट उस साथी को कहा– तुम मुझे बिगड़ना चाहते हो, ये गंदी चीज खिलाकर, मैं बाबूजी को कह दूंगा (मेरे पिताजी उसी विद्यालय में खतरनाक शिक्षक के रूप में स्थापित थे।) सो वह चुप हो गया और मेरा तम्बाकू से अलगाव हो गया और बच गया उस गन्दी लत से।
       उत्पादन :– मैं कक्षा ५ वीं में था, मोहनलाल ददरवाल ने मांगू महाराज की बाग में तम्बाकू की फसल बोई थी। खेत पर बनी झोपड़ी में हम कुछ साथी पढ़ाई करने जाने लगे। रात्रि में काफी समय पढ़ाई कर सो जाते और प्रातः ६ बजे उठ जाते। बद्री दादा की होटल पे चाय पी लेते। मैं सुबह जब देखता तो चारों ओर से खुला खेत गांव के कोने पर। सुबह-सुबह कुत्ते आते और टांग ऊंची कर तम्बाकू पर अपशिष्ट अर्पण कर जाते। कई दिनों के बाद मैंने यह जाना –कि चील, कौवे, चिड़ियां, कुत्ते आदि तम्बाकू के पत्तों पर गन्दगी करते थे। पत्ते अधकचरे सूखे थे कि उन्हें काटकर वहीं खेत मे आड़े डाल दिये, अब तो कुत्ते उस पर पेशाब के साथ गन्दगी भी.. ……
     मैंने साथी से कहा, यार मोहन भई कितनी गन्दी फसल है और तम इके बेची के गलत करी रिया हो! तो वो बोले हम तो बेचने वाले है, लोग हमारी दुकान पर आकर ले जाते है हम उनके घर थोड़ी जाते, वही वो एक जुमला भी सुना देता —
“लोग कहते है-‘इसे गधे भी नही खाते’,
तो मेरा कहना होता है-
‘जो गधे होते है वो ही नही खाते’।
         हुसैन बोहरा नामक मित्र की दुकान पर एक ग्रामीण महिला मुंह भरा होने के कारण बोल नही पा रही थी, मैने कहा-ये मुंह मे कचरा भरा है इसको थूक कर क्यों बात नही करती ? उसने कचरे को थूका, होठ के अंदर उंगली डाल कर तम्बाकू निकाल कर फैंकी। मेरे मोबाइल से ऑपरेशन वाले फोटो निकाले और मैंने बोला -“बय तम सामान तो बाद में लो जो, पेला इना फोटू ना के देखी लो”, चूंकि मैंरा फोटो स्टूडियो होकर वहां वह कई बार फोटो खींचा चुकी थी, सो उसने मेरी बात का बुरा न मानकर फोटो देखने लगी…मुंह,गाल जबड़ा के ऑपरेशन व टांके वाले फोटो देखकर वह महिला सिंहर गई, बोली-“यो कईं दादा” तो मैंने कहा– “तम्बाकू खाने वाला है ई सब! तमारा भी ई हाल हुई जायगा … तो मेरे मित्र ने भी समर्थन कर उस महिला को तम्बाकू खाने से मना किया। महिला तुरन्त मान गयी और   उसने तम्बाकू छोड़ दी। लगभग एक माह बाद वह मिली उसका पति भी साथ था, वह बोली-“इना दादा ने म्हारी तम्बाकू छोड़य थी।” उसका पति खुश होकर बोला- “माड़साब तम ने अच्छी छोड़य तमाकू, इको मुंडो घणो बासतो थो “तो पत्नी बोली दादा इनको भी मुंडो घणो बासे” …
  मैंने पूछा कायसे,तो वह बोली-“दारू से”।
तो पति बोल पड़ा- “माड़साब इको मुंडो बासतो थो तो मैं दारू पितो थो। मैने दोनों को समझाया-इनने तमाकू छोड़ दी, अब तम भी दारू छोड़ दो। दोनों ने मेरी बात रखी अब वे नशा मुक्त होकर बच्चों का अच्छे से लालन-पालन कर रहे है।
विशेष-मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र. के माध्यम से मैं और मित्र डॉ. इंदरसिंह राठौर, साथियों के साथ नशामुक्ति की होम्यो पैथिक दवाइयों का ऐसे अवसरों पर निःशुल्क वितरण करते रहे है।
व्यसनों को त्यागो,
भारतवासी जागो।

लेखक परिचय :- 
नाम – विनोद वर्मा
सहायक शिक्षक (शासकीय)
एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. अगस्त २०१९ तक हो जाएगी।
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान

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