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मैं पुरुष हूं

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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मैं पुरुष हूं
मर्दानगी की सूली पर चढ़ा हूं
कठोर हूं, निर्मम हूं ,निर्भय हूं
इस तरह ही मैं गढ़ा गया हूं.

मैं पुरुष हूं
खारिज भी किया गया हूं
कभी बेटा नालायक
कभी पति नामर्द
कभी पिता नाकाबिल
बताया गया हूं.

मैं पुरुष हूं
मुझे यह भी बताया गया है :
बस जिस्म तक सोचता हूं
मैं हवस की दलदल में धंसा
हवस का पुजारी कहा गया हूं.

मैं पुरुष हूं
दर्द से मेरा क्या रिश्ता
मैं पत्थर हूं
आंसुओं से मेरा क्या वास्ता
मगर सच तो ये है
कि मैं भी रूलाया गया हूं.

जब भी किसी गलत को
गलत कहता हूं
अपने ही घर में जालिम
करार दिया जाता हूं
मैं पुरुष हूं, ऐसे ही
दबा दिया जाता हूं.

मैं पुरुष हूं, लेकिन~
मुझमें भी हैं परतें
मुझमें भी पानी बहता है
खोल सकोगे जो परतें मेरी
तो देखोगे :
मुझमें भी सैलाब रहता है.

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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