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हमारा बिहार

डाँ. बबिता सिंह
हाजीपुर वैशाली (बिहार)
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जिला मोतिहारी बसें, सोमेश्वर महादेव।
एक बार दर्शन करो, दुख सब हरें स्वमेव।।

बैल राज्य का पशु है माना।
शिव वाहन है सब जग जाना।।
सोनपुर लगे मेला भारी।
पशुओं की हो खरीददारी।।

नीले नभ में पंछी घेरा।
वन वृक्षों पर नीड़ वसेरा।।
मधुबन में जब फूल खिले हैं।
गौरैया को मोद मिले हैं।।

गौरैया पक्षी सम्माना।
दे उपाधि जन-जन हरषाना।।
कोयल गावे जब सतरंगी।
भरे उमंगें अति मनरंगी।।

मलय श्वास सौरभ से लेकर।
मदिर आस है अलि के अंतर।।
राज्य पुष्प में गेंदा आता।
हर मौसम में मन भरमाता।।

वृक्ष लता के प्राण अनिल है।
कचनारों पर रंग सकल है।।
कर्म द्वार उदयाचल खुलता।
श्रृंगार हीरक कुंज करता।।

प्रथम विश्व गणराज्य है, माना गया बिहार।
विल्ब वृक्ष में बस रहे, शंकर पालनहार।।

पीपल राज्य वृक्ष में शोभित।
थल नभचर को करता मोहित।।
करे कमाल रक्त का शोधन ।
बेमिसाल विष का हो दोहन।।

देव सभी पीपल में बसते।
जल अर्पण कर सुख से रहते।।
चीन वीतरागी सारा है।
बौद्ध धर्म बहती धारा है।।

पुण्य धरा है पावन मनहर।
ज्ञान रतन की खानें भरकर।
बुद्ध स्तूप प्रेरक है पावन।
जन हित सब मंगल मन भावन।।

पश्चिम सीमा प्रदेश उत्तर।
नाम अतीव नेपाल सुंदर।।
पूरब पश्चिम बंग विशाला।
दक्षिण झारखंड की माला।।

राजगीर मलमासक मेला।
जाओ पलटन नहीं अकेला।।
जेठ महीना निज वर पाओ।
दुल्हे को सौराठ बनाओ।।

अचरज सातवाँ कहा जावे।
ह्वेनसांग नालंदा आवे।।
मिथिला खूब कलाकारी है।
जग विख्यात चित्रकारी है।।

मगध सभ्यता कौन बिसारे।
जहाँ अशोक नरेश पधारे।।
विविध वत्स अवन्ति में कौशल।
बिंबिसार को जाने जल-थल।।

नागर शैली में बना, नेपाली का धाम।
खजुराहो जैसा लगे, शिल्प कला का काम।।

पतझड़ बीता मधु ऋतु आयी।
कांवर झील है मन को भायी।।
नदी महानंदा का संगम।
कटिहार घोघा झील जंगम।।

नाम कीर्ति युग से मुख रहती।
गंगा मैया अविरल बहती।
पुण्य धरा यह ऋषियों की है।
शुद्ध कर्म सद्गति सबकी है।।

पाप सभी गंगा हरती है।
कोसी सुरसा घर भरती है।।
सीमा पर घाघरा नदी है।
पूर्वज देखे एक सदी है।।

मरण काल में गंडक जावें।
छूटे बंधन मुक्ति पावें।।
रीति और रिवाज सब पालें।
कोई काम कभी कब टालें।।

घाट कोनहारा चले,जो गंडक के तीर।
श्री हरि सालिकराम बन,आये हुए अधीर।।

नदी लोकमाता कहलाती।
देव धाम धरती यह भाती।।
सिमरिया को दिनकर सुहाए।
विद्यापति कोकिल कहलाए।।

फल्गू गंगा अरु गंडक है।
हरि -हर देते मन ठंडक है।
होते शिव चौमुखी सुहावन।
इच्छा पूर्ण करें मन भावन।।

तारन हारी फल्गु नदी है।
वर्षों से अभिशप्त पड़ी है।।
गया पूर्वजों को बैठाओ।
पूजा विष्णुपद में कराओ।।

संगम गंगा सोन का, गया पिंड का दान।
गौतम पाकर ज्ञान को, यहीं बने भगवान।

परिचय : डाँ. बबिता सिंह
निवासी : हाजीपुर वैशाली (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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