
सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव (गोण्डा, उ.प्र.)
वरिष्ठ साहित्यानुरागी डॉ. अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’ का छंदबद्ध काव्य संग्रह ‘नवोन्मेष’ के अवलोकन के साथ ही यह महसूस हुआ कि अपने नाम के अनुरूप ही संग्रह अपने विशिष्टताओं का महाकुंभ जैसा है।
अपने “दो शब्द” में कृतिकार का शब्द भावों के बारे में विचार है जब कोई भाव रचनाकार के दिल के तार को झंकृत कर उसके दिमाग तक पहुँचता है, तब वह अपनी भावाभिव्यक्ति को शब्द रूप देता है।
नवोन्मेष का अर्थ है नया उत्थान, नया तरीका, नई खोज या कुछ करने की नई पद्धति जो निराली हो और पहले से बेहतर हो। इसी को पोषित करने के उद्देश्य से “नवोन्मेष (छंदबद्ध काव्य संग्रह)” की परिकल्पना की गई है और इसे धरातल पर उतर गया है।
आचार्य ओम नीरव जी का मानना है कि डॉ. अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’ जी काव्यकला में पारंगत छंदबद्ध कविता के समर्थ सर्जक हैं। आपकी सर्जना शिल्प-सधी और भाव-भरी है, नवांकुरों के लिए प्रेरक है, साहित्यकारों के लिए सुरुचिपूर्ण एवं पठनीय है तथा सामाजिकों के लिए रसानन्द्वर्धक एवं लोकमंगलकारी है।
प्रस्तुत संग्रह को कीर्तिशेष माँ और बाबूजी के चरणों में सादर समर्पित करते हुए रचनाकार ने १९ खण्डों (शीर्षक- नवोन्मेष, सरस्वती/ शारदा वंदन, प्रातः कालीन प्राकृतिक छटा, संस्कार, सुविचार व जीवन दर्शन, नारी विमर्श, देश -भक्ति, संविधान, मतदान, प्रकृति, पर्यावरण, प्रदूषण, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, सावन, शीत ऋतु , वसंत ऋतु, राष्ट्रीय पर्व त्योहार, महत्वपूर्ण दिवस, भक्ति काव्य, प्रेम/श्रृंगार रस, वात्सल्य रस,ओज/वीर रस, हास्य रस एवं विविध सामाजिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक) में विविध छंदों में विभिन्न विषय पर रचनाओं को प्रस्तुत किया है।
मनहरण घनाक्षरी छंद में ‘दिनकर प्राची दिशा’ शीर्षक रचना में कवि सुंदर सार्थक संदेश देते हुए लिखता है –
दिनकर प्राची दिशा,
बित गयी काली निशा,
सुखद सुहाना भोर,
प्रातः पूजा कीजिए।
विधाता छंद में ‘सिखाया है जिन्हें चलना’ में आज के यथार्थ का चित्रण करती ये पंक्तियां जैसे आमजन की पीड़ा को बेबाकी से रेखांकित करती हैं –
दिलाया उच्च शिक्षा है, उन्हें सब दर्द ही सहकर।
वही आँखें दिखाते हैं, जिन्हें पाला शुभी कहकर।।
ज़माने की यही रंगत, सदा मुझको जलाती है। जिन्हें संतान समझा था, वहीं खंजर चलाती है।
सरसी छंद में ‘नशा मुक्ति’ में कवि नशा के नकारात्मक पक्षों को सहजता से उकेरते हुए सचेत करने का प्रयास करते हुए साफ सुधरे लहजे में आम जन तक अपनी बात पहुँचाने की कोशिश करता प्रतीत होता है-
नशा घरों का पतन कराता, करता सत्यानाश।
इससे हरदम बचकर रहना, करता नित्य निराश।।
आरती छंद में ‘पाषाण’ शीर्षक में कवि पाषाण के विभिन्न परिदृश्यों का बोध कराने की कोशिश करते हुए कहता है कि –
आज आदमी है पाषाण। सोचता नहीं है कल्याण।
बैर द्वैष ने छेड़ा तान। जिंदगी बनी है श्मशान।।
रोला छंद में “नारी की महिमा” शीर्षक में नारी की महिमा का बखान करते हुए कवि का मानना है –
कभी उड़ाती यान, कभी झांसी की रानी।
नहीं असंभव काम, कभी बनती सेनानी।।
लक्ष्मी का शुभ रूप, यही है मातु भवानी।
हर लेती सब कष्ट,सदा देती कुर्बानी।।
छंदमुक्त कविता ‘नेत्र बयां करते हैं’ की ये पंक्तियां समीचीन हैं-
कौन घड़ी दिल/ तार- तार हो/क्रंदन/करता जाये।
नेत्र बयां करते हैं/ सब कुछ/होंठ नहीं/ कह पाये।।
मनहरण घनाक्षरी में ‘मतदान’ शीर्षक से मतदाताओं को जागरूकता का संदेश देती ये पंक्तियां –
मत का प्रयोग करें,
नहीं इसे व्यर्थ करें,
कुशल विचारवान
योग्य नेता लाइए।
मनोरम छंद में ‘रामनवमी’ का शाब्दिक चित्रण करते हुए कवि मानता है –
राम नैया पार करते।
सर्व पीड़ा पाप हरते।।
है सहारा राम का ही।
जाप है नित नाम का ही।।
चौपाइयों में ‘शिव स्तुति’ के परिप्रेक्ष्य में कवि वंदन करता प्रतीत होता है –
नारद सादर सब गुण गायें।
सुगम सरल विधि तुमहीं पायें।।
शिव आजन्मा शिव अविनाशी।
शिव व्यापक घट-घट के वासी।।
रामचरितमानस की महिमा को दोहावली के माध्यम से कहते हुए कवि स्वीकार करने में संकोच नहीं करता और अपनी लेखनी के माध्यम से जनमानस को बताने की कोशिश इस तरह करता है –
रामचरितमानस सदा, देता अनुपम ज्ञान।
सुगम सुफल जीवन बने, आनंदित सोपान।।
बाल कविता – चौपाई छंद में ‘मेरे पापा मेरे हीरो’ में बालसुलभ मनोभावों को कवि कुछ इस तरह चित्रित करते हुए लिखता है –
दादा जी के राजदुलारे।
दादी के आँखों के तारे।।
सबके प्यारे मेरे पापा।
सबसे न्यारे मेरे पापा।।
अंतिम रचना ‘योग’ की ये पंक्तियां योग की महत्ता को रेखांकित करने के साथ प्रेरक भी हैं –
तन और मन स्वच्छ,
योग करें सब अच्छ,
शांति भावना से नित्य,
जीवन सजाइये।
प्रस्तुत संग्रह में रचनाकार डॉ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’ जी ने एक ओर जहाँ अपनी रचनाओं को विविध छंदों में सृजित कर परोसा है, वहीं विभिन्न विषयों के माध्यम से आम जन जीवन के अधिसंख्य पक्षों को अपनी रचना का आधार बनाया है। इस संग्रह की रचनाओं में संदेश है, प्रेरणा है, चिंतन है तो चिंता भी। कथ्य के दृष्टिकोण से भी कवि ने बड़े सलीके और सौम्यता के साथ अपनी बात को रखा है, जो पाठक के मन: मस्तिष्क को जागृत करने में तथा सफलता का प्रतीक बनने में समर्थ है। साहित्यिक अभिरुचि के पाठकों के अलावा प्रस्तुत संग्रह उन रचनाकारों के लिए विशेष रूप से संग्रहणीय दस्तावेज की तरह है जो छंद सीखने और सृजन के प्रति जागरूक हैं।
बतौर पाठक मेरा मानना है कि प्रस्तुत ‘नवोन्मेष (छंदबद्ध काव्य संग्रह) एक से अधिक बार पढ़ने की उत्सुकता बनाये रखने के साथ ज्ञानार्जन की दृष्टि से भी अपनी छाप छोड़ने में समर्थ है। निश्चित ही इसे रचनाकार/कवि की सफलता ही कहा जाएगा। हो भी क्यों नहीं, गुंजन जी छंदों के मर्मज्ञ ज्ञाता भी तो हैं।
मेरा विश्वास है कि प्रस्तुत संग्रह ‘नवोन्वेष’ अपनी विशिष्ट पहचान के साथ दूर-दराज के पाठकों तक अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने और सफलता के नव सोपान गढ़ने में समर्थ होगा।
शुभेच्छा सहित …
परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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