
डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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व्यंग्य संग्रह – गिरने में क्या हर्ज़ है।
व्यंग्यकार – डॉ. मुकेश गर्ग “असीमित”
प्रकाशक – भावना प्रकाशन, दिल्ली।
मूल्य – ३०० रु. (पेपरबैक)
समीक्षक – डॉ. गणेश तारे (शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्थापक अल्बर्ट आइन्स्टाइन एजुकेशन ग्रुप कोटा)
डॉ. मुकेश गर्ग “असीमित” की पुस्तक “गिरने में क्या हर्ज है” एक रोचक कृति है जो हिन्दी साहित्य में व्यंग्य लेखन, पठन, पाठन में रूचि रखने वाले साहित्य प्रेमियों का ध्यान बरबस खींचने में सक्षम है। पहले बात शीर्षक की। शीर्षक अपने आप में एक तीव्र आकर्षण लिए है। जब मुझे यह पुस्तक प्राप्त हुई तो आमुख पढ़ने के बाद सबसे पहले मैंने पुस्तक के शीर्षक वाला व्यंग्य पढ़ने का विचार किया। व्यंग्य पढ़ने के पहले मैंने सोचा कि डॉ. मुकेश ने इसमें क्या लिखा होगा? तो मैं मेरा अंदाजा बता दूं। भौतिक शास्त्र से गहरा जुड़ाव होने के कारण फिजिक्स गिरने को कैसे देखती है यह जानना दिलचस्प होगा। गिरना सार्वभौमिक परिघटना या यूनीवर्सल फिनोमिना है। एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जीवन में कुछ हो न हो गिरना तो तय है। फिजिक्स कहती है कि एवरी सिस्टम टेंड्स टू एक्वायर अ स्टेट ऑफ मिनिमम पोटेंशियल एनर्जी। तो ये जो मिनिमम पोटेंशियल एनर्जी या न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा की स्थिति होती है वह पृथ्वी के धरातल पर होती है। इसे यूं समझिए।छत की मुंडेर पर कोई पत्थर रखा है। उसे बस आप सरका कर मुंडेर के किनारे पर ले आइए और देखिए क्या होता है? वह गिर पड़ेगा। पृथ्वी के धरातल पर आ जाएगा। इससे नीचे तो रसातल है। और कोई पत्थर स्वत: ही रसातल में नहीं चला जाएगा। रसातल में जाने के लिए “अतिरिक्त प्रतिभा” की आवश्यकता होती है। ऐसी विलक्षण प्रतिभायें राजनीतिक और सार्वजनिक क्षेत्र में मनमान भरी पड़ी हैं। नामों की फेहरिस्त आप तैयार करें। मुझे आपकी योग्यता, ईमानदारी और नीयत पर पूरा भरोसा है।
पुस्तक के पृष्ठ सतत्तर से अस्सी तक मुद्रित व्यंग्य (जो पुस्तक का टाइटल भी है) पढ़ते ही लेखक के गहरे चिंतन मनन का परिचय मिलता है। लेखक यूं ही कुछ भी नहीं लिख रहा। वह पहले नब्ज टटोलता है, फिर पूरी चीर_फाड़ करता है, आब्जर्व करता है फिर अपनी रिपोर्ट पेश करता है। ऐसा इसलिए कि लेखक पेशे से डॉक्टर है। विज्ञान की पृष्ठभूमि वाला बंदा जब साहित्य में जोर आजमाइश करता है तो उसका लेखन, सृजन एक अलग डाइमेंशन लिए होता है। गिरने में क्या हर्ज है व्यंग्य में कौन कौन, कहां-कहां, किस सीमा तक गिर सकता है, इसका सम्पूर्ण चित्रण है। यूं तो बात रुपये को लेकर कही गई है। रुपये का डॉलर के सापेक्ष गिरना लेख का मूल मुद्दा है। किंतु जो लिखा गया है उसके इतर जो प्रतिध्वनि निकलती है वह इस लेख को व्यापक फलक प्रदान करती है। “बिट्विन द लाइंस” का मंतव्य किसी रचना का वैशिष्ट्य हुआ करता है।इस पैमाने पर रचना एक अलग स्थान पर आसीन नजर आती है। अब इस वाक्य पर गौर फरमाइए। लेखक कहता है, “सड़क पर कोई एक्सीडेंट में घायल आदमी गिर पड़ा हो तो लोग नज़रअंदाज कर जाते हैं लेकिन अगर तुम गिरे मिल जाओ तो एक सेकंड उठने में नहीं लगाते।” यहां “तुम” से मंतव्य रुपये से है। अब यह तो पराकाष्ठा है। आदमी की कीमत एक रुपल्ली से भी गिरी हुई है। पैसे की दौड़ में अंधे हुए युग का इससे बेहतर चित्रण सम्भव है क्या? डॉ. मुकेश एक बात कहूं आपकी यह पुस्तक केवल व्यंग्य रचनाओं का संकलन नहीं अपितु आपके गहन चिंतन का प्रतिफल है।
पुस्तक में लगभग त्रियालीस व्यंग्य हैं। हर व्यंग्य का शीर्षक पाठक में त्वरित तीव्र उत्कंठा जगाता है। कुछ शीर्षक पेश हैं। मुझे भी बिकना है, तीये की रस्म, लौकी का डिजिटल मेक-ओवर, शादी में रुठे फूफाजी, इवेंट मैनेजमेंट- विवाह से विसर्जन तक, छपास की बीमारी, चंदा का धंधा, कुंवारा लड़का-दुखी बाप, आईने की व्यथा आदि। ये शीर्षक बानगी भर हैं। पुस्तक को पढ़ने के बाद ही पता चलता है कि पुस्तक की विभिन्न रचनाएं वर्तमान में समाज में व्याप्त विसंगतियों, अनाचार, आडंबर, संवेदनहीनता जैसे मुद्दों को न केवल पूरे जोश खरोश के साथ उठाती हैं अपितु पाठक को यह सोचने के लिए बाध्य करती है कि यदि वह इन परिस्थितियों से रूबरू होता तो उसकी प्रतिक्रिया और फिर प्रतिक्रिया जनित उसका व्यवहार कैसा होता? जाते जाते बताता चलूं कि व्यंग्य रचनाएं मैं चाव से, ध्यान से पढ़ता हूं। मेरा मानना है कि व्यंग्य लेखन केवल हल्की-फुल्की हंसी ठिठोली न होकर एक गम्भीर विधा है। इसे पढ़ने, समझने व आनंदित होने के लिए पाठक को लेखक के विचारों के संग प्रवास करना होता है। “गिरने में क्या हर्ज है” पुस्तक डॉ. मुकेश गर्ग “असीमित” की असीमित संभावनाओं को उजागर करने वाला एक प्रामाणिक दस्तावेज है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही आपकी पहली पुस्तक नरेंद्र मोदी का निर्माण : चायवाला से चौकीदार तक प्रकाशित होने जा रही है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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