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वे पुरानी औरतें

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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जाने कहाँ मर-खप गई
वे पुरानी औरतें
जो छुपाए रखती थी
नवजात को सवा
महीने तक घर की
चार दीवारी में।
नहीं पड़ने देती थी
परछाई किसी की
रखती थी नून राई
बांध कर जच्चा के सिरहाने

बेल से बींधती थी चारपाई
रखती थी सिरहाने
पानी का लोटा
सेर अनाज
दरवाजे पर सुलगाती
थी हारी दिन-रात।

कोई मिलने भी आता
तो झड़वाती थी
आग पर कपड़े
और बैठाती थी
थोड़ा दूर जच्चा-बच्चा से
फूकती थी राई, आजवाइन,
गुगल सांझ होते ही
नहीं निकलती देती थी
घर से गैर बखत किसी को।

घिसती थी
जायफल हरड़
बच्चे के पेट की
तासीर माप कर
पिलाती थी घुट्टी
और जच्चा को देती थी
घी आजवाइन
में गूंथ कर रोटियाँ।

छ दिन तक
रखती थी दादा की
धोती में लपेटकर बच्चे को
फिर छठी मनाती थी
बनाती थी काजल
बांधती थी गले में
राई लाल धागे से.

पहनाती थी
कौड़ी पैर में
पगथलियों पर
काला टीका लगा
लटकाती थी गले
में चाँद सूरज
बाहर की हर
अला-बला से बचाती थी
कहती कच्ची
लहू की बूंद है अभी ये
ओट में लुगड़ी की
दूध पिलाती थी।

अगर कहीं हो
तो घर से बाहर
निकल कर
देखो पुरानी औरतों
मंडी, प्रदर्शनी सब लगी है
दूधमुंहे बच्चों तक की
सोशल मीडिया पर।

कोई नजर का टीका
कोई नज़रिया बचा हो
तो बाँध दो इन्हें
वरना झूल रहे हैं ये
बाज़ार की गोद में
कमेंट्स और
लाइक्स पाने के लिए
भूसा भर रहे हैं
अपनी खोल में

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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