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इंतजार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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माँ के हाथ की लकीरों में क्यूँ
सिर्फ होता है “इंतजार”
माँ बनने का इंतजार,
बच्चे के स्कूल जाने,
उनके वापस आने का इंतजार
बड़े होकर घर से बाहर निकलना
उनके वापसी का इंतजार
अपने हाथों से पका
ममता के स्वाद से भरा
भोजन खिलाने का इंतजार,
बच्चों के प्यार, रूसने,
मान जाने का इंतजार

बूढे होते थक चुके
माँ के शरीर को,
प्यार से गले
लगाने का इंतजार
बंद कमरे के कोने मे
दुबकी निढाल माँ को किसी
कदमों की आहट का इंतजार,
दर्द से कराहती काया को
किसी के दुलार का इंतजार,
कमजोर बूढे होते शरीर को
मजबूत लाठी का इंतजार

अखिर कब तक
करे माँ इंतजार
क्या उसका
भाग्य है “इंतजार???

माँ की झिल्लीयां
पुरानी हो जाती है
पर उसका प्यार कभी
पुराना और बूढ़ा नहीं होता
माँ की उम्मीद की
इमारत को धराशायी
मत होने दो,
मत करने दो उसको
इतना इंतजार!!
समय रेत की तरह
हाथों से फिसल जाता है
रह जाता है तो केवल
आत्मग्लानि भरे दिल को
सूकून का इंतजार!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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