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मन कहे.. लो बसंत आ गया

छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
आनंद विहार (दिल्ली)
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अंगुलियाँ हिलने लगी
कलम चलने लगी
उतरने लगे फिर प्रणय गीत
मन कहे.. लो बसंत आ गया

डाल डाल पर
नई कौपलें
बन जायेगी कल कलियाँ
मंडरायेंगे मधुप
पीने पराग
छल जायेंगे फिर छलिया
जब बहे प्रीत का दरिया
उर आनंद समा गया
मन कहे.. लो बसंत आ गया

चले पवन
ले पतंग
प्रीत डोर से बंधी हुई
संग चली
छाया अपनी
कदम कदम सधी हुई
नेह भरे नयन अंजनी
अंग अंग यौवन छा गया
मन कहे.. लो बसंत आ गया

बदन मदनी
हुआ उन्मत्त
मन आनंद छाने लगा
ले नव गीत
जीवन संगीत
मनपाखी मस्त गाने लगा
सातों सुर सजे सात रंग
इंद्रधनुष नभ छा गया
मन कहे.. लो बसंत आ गया

तारे सनद
मन मदमत
तन पुलकित होने लगा
बाँध भुजपाश
मीत के साथ
अभिसार विचार होने लगा
मन पढ़ भाव मीत मन के
दिवा स्वप्न में समा गया
मन कहे.. लो बसंत आ गया

रति उतरे धरा
संग काम झरा
महुआ भी महकने लगा
मुस्काये मयंक
निशी छिपाये कलंक
नव युगल तन दहकने लगा
जगे संवेदन,बढे स्पंदन
प्यासे में तूफान आ गया
मन कहे.. लो बसंत आ गया
अंगुलियाँ हिलने लगी
कलम चलने लगी
उतरने लगे फिर प्रणय गीत
मन कहे.. लो बसंत आ गया
लो बसंत आ गया…..!

परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
निवासी : आनंद विहार, दिल्ली
विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन, राजस्थानी लोक गीतों के लिए प्रसिद्ध कंपनी “वीणा कैसेटस” के दो एलबमों में सात गीत संगीतबद्ध हुये हैं।
सम्मान : “राजस्थानी आगीवान” सम्मान से सम्मानित
श्री गंगानगर के सृजन साहित्य संस्थान का सृजन साहित्य सम्मान व
सरदारशहर गौरव (साहित्य) सम्मान व अनेक अन्य सम्मानरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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