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यूँ बन जाती है कविता

छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
आनंद विहार (दिल्ली)
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शब्दों का मीठा टुकड़ा
मुस्काता मनभाता मुखड़ा
धुँधली यादों में खोया मन
रोता रहा जीवन का दुखड़ा
जलता रहा अलाव तपता….
यूँ बन जाती है कविता….

मन एक तपिश बढ़ी
पवन में कशिश बढ़ी
तन कुछ कह न सका
मन वह सह न सका
बिन धुंवे रहा सुलगता…..
यूँ बन जाती है कविता….

घाव मौन सिसकते रहे
अरमान यूँ बिखरते रहे
कुछ कहे,कुछ अनकहे
झरने प्रेम के बहते रहे
अंदेशा तूफ़ान का रहा बढ़ता…
यूँ बन जाती है कविता….

काग़ज़ की नाव ही सही
भाव नफ़रत के ही सही
बहाने बनते बिगड़ते रहे
पर डोर तो जुड़ी ही रही
रंग प्राची नभ रहा चढता…..
यूँ ही बन जाती है कविता….

आस अभी मन से छूटी नहीं
चल रही सांसे भी टूटी नहीं
चिंगारी को ज़रूरत हवा की
आग भड़कने से रूकती नहीं
पर रूख हवा का रहा पलटता…
ऐसे ही बन जाती है कविता….

हृदय में बसी है अकुलाहट
तेवर समायी है तमतमाहट
सुने कौन कहे मन किससे
फैली फिजां में है घबराहट
मन जीने का संताप बढ़ता…..
ऐसे बन जाती है कविता….

काश जीाता होता विश्वास
काश न टूटती वो मनआस
भाग्य भी कहाँ अपने रहा साथ
तो वक़्त भी करने लगा निराश
भविष्य साफ़ दर्पण में दिखता….
ऐसे बन जाती है कविता….

परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
निवासी : आनंद विहार, दिल्ली
विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन, राजस्थानी लोक गीतों के लिए प्रसिद्ध कंपनी “वीणा कैसेटस” के दो एलबमों में सात गीत संगीतबद्ध हुये हैं।
सम्मान : “राजस्थानी आगीवान” सम्मान से सम्मानित
श्री गंगानगर के सृजन साहित्य संस्थान का सृजन साहित्य सम्मान व
सरदारशहर गौरव (साहित्य) सम्मान व अनेक अन्य सम्मानरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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