डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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आप चाहते हैं कि आप हमेशा दुनिया की नजरों में बने रहें, सबकी निगाहें आप पर टिकी रहें। जिस गली से गुजरें, लोग आपको देखकर रुक जाएँ, हाल-चाल पूछें, आपको याद करें। बस, आप आ जाइए हमारे पास, लगवा लीजिए एक प्लास्टर … सच में, हर जगह आपकी पूछ होगी। जो आपको जानते हैं, जो नहीं जानते, सब आपको रास्ते में रोक सकते हैं। अगर आपके हाथ में प्लास्टर लगा हुआ है, तो आप इस शहर के लिए एक चलता-फिरता अजूबा बन सकते हैं। लोग आपको ऐसे देखने लगेंगे जैसे चिड़ियाघर से कोई प्राणी सड़क पर आ गया हो।
और अगर आपकी टांग में प्लास्टर लगा हुआ है और आप घर में कैद हैं, तो लोग आपके घर तक भी आ सकते हैं। पुराने दोस्त, रिश्तेदार, मोहल्ले वाले, जो कभी आपका हाल तक नहीं पूछते, वे भी बिना रोक-टोक आपके दरवाजे पर आ जाएँगे। कसम से, रातों-रात आपको लगेगा कि पूरी दुनिया आपकी टांग की चिंता में कितनी बेचैन हो गई है। आपने भले ही कभी किसी के काम में टांग न फंसाई हो, पर जब आपकी टांग टूटेगी, तो लोग आपकी टांग का हाल जानने दौड़े चले आएँगे। इतनी हसरत से आपकी टांग को देखेंगे जैसे उन्हें लग रहा हो कि यह अवसर उनको क्यों नहीं मिला, काश उनके भी प्लास्टर लगा होता … आज उनके घर पर भी पूछने वालों का जमावड़ा लगा होता।
शर्मा जी के कान दरवाजे पर लगी कॉल बेल पर हैं। जैसे ही कॉल बेल बजती है, शर्मा जी अपनी टांग को तकिये पर रख देते हैं। सामने वाले को, जिस पर शोक प्रकट करना है, वह सामने रहेगी तो आने वाले को धक्का सा नहीं लगेगा “की यार प्लास्टर वाली टांग कहाँ है, ’कहीं हम ठगा तो नहीं गए, खबर तो पक्की है न? कहीं हमारे समाचार लेने से पहले ही प्लास्टर कट गया हो..दस वहम जी..। मुख पर दुःख और वेदना के भाव ले आते हैं, चेहरा थोड़ा लटका लेते हैं। इधर, श्रीमती जी किचन में चाय का पानी चढ़ा देती हैं, बेटा बाहर दूध की थैली और चाय की पत्ती लेने को भागता है। प्लास्टर वाली टांग तकिये पर रखी है। लोग आ रहे हैं… मातमपुरसी का पूरा माहौल है। आहें भरी जा रही हैं, टांग को पकड़-पकड़ कर हिलाकर देखा जा रहा है, “जिंदा है न?” शर्मा जी को थोड़ी उँगली चलाने को कहा जाता है। शर्मा जी उँगली चलाते हैं, हाँ… ठीक
है, मन को तसल्ली। टांग जिंदा है। डॉक्टर ने भी कहा है, हर एक घंटे में उँगली चलाते रहें, तसल्ली रहेगी कि टांग जिंदा है। क्या शर्मा जी, क्या मिश्रा जी, क्या गुप्ता जी – जिनकी टांग टूटी है और प्लास्टर लगा है, सबकी एक ही राम कहानी है। अब आप तैयार हो जाइए, इस पूरी कहानी के भूत, भविष्य और वर्तमान को सुनाने के लिए। कोई भी बात छूटनी नहीं चाहिए। सबसे पहले तो यह बताएं कि चोट कैसे लगी, कितना दर्द हुआ, आवाज आई थी क्या टांग टूटने की? जब टांग टूटी, कैसा महसूस हुआ—अच्छा या बुरा? अब कैसा महसूस हो रहा है?
फिर समाचार लेने वाला कोशिश करेगा आपको सांत्वना देने की, “अरे भाई साहब ,आपकी क्या टांग टूटी है पिद्दी सी …. ! ये भी कोई टांग टूटना होता है? टांग तो हमारे साले साहब की टूटी थी … भाई साहब, कैसी टांग टूटी थी उनकी, सच में!”
शर्मा जी सोचेंगे कि कितनों को सुना चुके हैं, अब क्या सुनाएँ बार-बार वही कहानी। यह भी कोई बात हुई… जो साहब समाचार लेने आए हैं, उन्हें तो सुनाना ही पड़ेगा, वरना वे ही आपको सुना देंगे, “बताइए, हम समाचार लेने आए और इन्हें इतनी भी तमीज़ नहीं कि हमें बता दें कि हुआ कैसे?” घटनास्थल का आँखों-देखा हाल तो आपको ही बताना पड़ेगा। या तो एक कैसेट रिकॉर्ड कर लीजिए और प्ले कर दीजिए या अपनी कहानी किसी नौकर को रटा दीजिए और उसे इस काम पर लगा दीजिए। समाचार लेने वाला व्यक्ति अपनी सांत्वना देने से पहले पूरी घटना की गंभीरता के अनुसार अपनी सांत्वना की पोटली खोलेगा। फिर आपको कुछ सबूत भी पेश करने पड़ेंगे कि वास्तव में टांग टूटी है या यूँ ही मजाक कर रहे हैं, क्या पता आपका नकली प्लास्टर लगाकर बैठे हों। अब सबूत में आप डॉक्टर की पर्ची, एक्स-रे फिल्म, प्लास्टर का बिल, या फिर टूटने के समय की कोई वीडियो रिकॉर्डिंग, या टूटने की आवाज की ऑडियो रिकॉर्डिंग, या कोई चश्मदीद गवाह प्रस्तुत कर सकते हैं। अब यह साबित तो आपको ही करना पड़ेगा न, आखिर टांग भी तो आपकी ही टूटी है। कई समाचार लेने वाले निराश भी होंगे…” अरे क्या शर्मा साहब, हम समाचार लेने आये हैं यह सोचकर की कोई ढंग की टांग टूटी होगी…ये क्या मामूली सा फ्रैक्चर …बताओ काम धाम छोड़कर एक तो इनके समाचार लेने आओ, और एक ये हैं महाशय हैं की, ढंग से टांग भी नहीं तुड्वाते“ शर्मा जी ग्लानी से मरे जा रहे हैं..’अगली बार शिकायत का मौका नहीं देंगे ऐसा प्रण लिए हैं’
“शर्मा साहब, आप तो इतने संभलकर चलते हैं, गाड़ी भी धीरे चलाते हैं, कई बार देखा हमने।” ऐसे लोग तो शर्मा जी से जलन रखते हैं कि “शर्मा साहब इतना धीरे क्यों चलते हैं, कभी टांग-वांग क्यों नहीं तुड्वाते ताकि हमें भी समाचार लेने का मौका मिले।” बहुत दिनों से सोच रहे थे कि शर्मा जी से मिलने का मौका कब मिलेगा, असल में उन्हें अपने बेटे की नई जॉइनिंग के बारे में सलाह लेनी थी। और देखो, आज मौका मिल गया। एक पंथ दो काज।
शर्मा जी शुरू करते हैं, लेकिन समाचार लेने वालों का ध्यान नाश्ते में परोसे गए समोसों पर चला जाता है। सोचते हैं, “सुनाएँ या नहीं?” लेकिन मन को तसल्ली देते हैं, “अरे समोसे तो मुँह से खा रहे हैं न, कान थोड़े ही व्यस्त हैं, सुन तो रहे हैं न।” लो, उन्होंने समोसा आधा खत्म करके प्लेट में रख दिया, अब पूछ भी रहे हैं, “तो शर्मा जी, कैसे हुआ एक्सीडेंट?” शर्मा जी कहने वाले होते हैं, “बहुत दिनों से टांग में खुजली चल रही थी, एक्सीडेंट से मिलने की खुजली ।रोजाना रास्ते में एक्सीडेंट मिलता … पूछता ‘शर्मा जी अब तो हो जाने दो न..देखो आपकी टांग भी मिलना चाह रहे है मुझ से … ‘फिर एक दिन, तरस खाकर मैंने कह दिया – हो जाओ भाई। बस हो गया।”
जब वे आएंगे और प्लास्टर को देखेंगे तो कहेंगे, “अरे शर्मा जी, कितने दिन का कहा है डॉक्टर ने?” आप कहेंगे, “जी, २० दिन का।” तुरंत कोई बोलेगा, “नहीं-नहीं, कम से कम ६ हफ्ते रखवाइए शर्मा जी। डॉक्टर को कहिए, २० दिन के बाद और २० दिन बढ़ा दे। अब टांग बार-बार तो टूटती नहीं, आराम दीजिए टांग को।”
कुछ लोग सलाह देंगे, “यार, आपको डॉ. रस्तोगी को दिखाना चाहिए था, वो सही में टांग जोड़ते हैं। हमारे साले साहब की टांग जोड़ दी थी और जुड़ने के बाद लगा ही नहीं कि पहले टूटी थी।” स्साला एक्सीडेंट भी कन्फुज ..यार ये टांग अभी तक टूटी क्यों नहीं …नया माल लग रहा है बिलकुल..फ्रेश। शर्मा जी सोचेंगे, “अगली बार जब टूटेगी तो डॉ. रस्तोगी को भी अजमा लेंगे।”
फिर कोई पूछेगा, “वैसे हुआ क्या था?”
आप कहेंगे, “जी, टांग टूट गई है।”
“किसने बताया?”
“डॉक्टर ने।”
“अरे किस डॉक्टर को दिखाया?”
“डॉ. गर्ग साहब को।”
ये वो लोग है जो बाल की खाल निकलने को आतुर..इन्हें लगता है ये सब सहानुभूति बटोरने के बहाने हैं, हम समाचार लेने वालों को नाहक परेशान किया जा रहा है … अब कुछ लोग अप्र्त्यक्ष्य रूप से आपके मोटिवे को जानने के लिए अपनी कहानियाँ सुनाने लगेंगे, “वो अपने वर्मा जी हैं न, चुनाव में ड्यूटी लगी थी, छुट्टी नहीं मिल रही थी, तो डॉ. गर्ग ने एक पर्ची बना दी, एक नकली प्लास्टर लगवा दिया और छुट्टी मिल गई।”
शर्मा जी क्या करें, कहेंगे, “अरे, मेरी तो सच में टूटी है। आप प्रमाण चाहते हैं? ये लीजिए एक्स-रे।” और एक्स-रे उल्टा पकड़कर देखने वाले कहेंगे, “अरे डॉक्टर ने फ्रैक्चर कहाँ से निकाल दिया? हमें तो कहीं कोई फ्रैक्चर नजर नहीं आ रहा।” तब शर्मा जी अपनी आखिरी गवाही के लिए अपनी पत्नी को बुलाएँगे, “जरा बताओ न, कैसे हुआ?” पत्नी कहेंगी, “भाई साहब! स्कूटी पर जा रहे थे, गड्ढे तो आपको पता ही हैं सड़कों पर। दोनों गिरे और टांग नीचे आ गई स्कूटी के।”
फिर प्लास्टर के रंग-रूप और शेप का मुआयना करेंगे। सलाह देंगे, “फाइबर लगवाते, महंगा है पर अच्छा दिखता है।” कुछ लोग अपने पेन-पेंसिल से आपके प्लास्टर पर शुभकामनाएँ लिखकर या अपने ऑटोग्राफ देकर भी जाएंगे, जैसे यह अतिथि बुक हो और वो अजायबघर में आये हैं, आपकी प्लास्टर वाली टांग को देखने। कुछ सलाहकार देसी इलाज़ भी सुझाएँगे। कोई गाय का मूत्र, कोई बकरी का दूध, तो कोई सूअर का घी, और कहेंगे कि लगाओ, फायदा होगा। शर्मा जी को ऐसा लगने लगेगा कि टांग पर जितना प्लास्टर का चूना नहीं लगा, उससे ज्यादा सलाह का चूना चढ़ रहा है।
रिश्तेदार सब्जी-फल भी लेकर आएंगे, “भाई साहब, क्या हो गया महंगाई को … सेब देखो तो २०० रुपए किलो हैं और वो भी सड़े हुए, मजबूरी में केले लेकर आ गए।” शर्मा जी उनके केले की थैली के बोझ टेतले दबे जा रहे हैं … अरे इसकी क्या जरूरत थी भाईसाहब …. इस भार को थोडा हल्का करने के लिए शर्मा जी कहेंगे, “सुनो, चाय बना दो न। रिश्तेदार…”हें हें ..अरे भावी जी को क्यों परेशान करते हैं … चलो बना ही रहे हैं तो फीकी ही बनाना, तुम्हें पता है डायबिटीज हो गई है,अरे हाँ आपको सुगर तो नहीं है?” शर्मा जी कहेंगे, “चेक नहीं कराई।” इस पर एक और सुझाव मिलेगा, “अब तो शुगर चेक करवानी पड़ेगी। कई के पैर सड़ गए हैं प्लास्टर के बाद।” फिर उनके पास किस्सों की भरमार है, प्लास्टर की बीभत्स रस से भरी हुई स्टोरी के … किसी का प्लास्टर टाइट होने से, किसी के सुगर होने से न जाने कितनी टाँगे सडकर कट चुकी हैं।
शर्मा जी प्लास्टर प्रकरण की इन डरावनी कहानियों को सुनकर थरथर काँप रहे हैं कुछ लोग तो यही चाहेंगे कि जल्दी ठीक न हों। “भाई साहब, प्लास्टर खुलने के बाद भी हल्के काम करना, और दूसरी टांग का भी ख्याल रखना। ये एक बार टूटे तो दूसरी को जलन होने लगती है।” कुछ लोग बार-बार आएंगे, क्योंकि आप मजबूर हैं, टूटी टांग के साथ पड़े हैं। अब आप बहाना भी नहीं कर सकते कि घर पर नहीं हैं, आखिर टांग टूटी है, कोई मजाक थोड़े ही।
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही आपकी पहली पुस्तक नरेंद्र मोदी का निर्माण : चायवाला से चौकीदार तक प्रकाशित होने जा रही है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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