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डोर

मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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मत जाना तुम कभी छोड़ कर,
रात-दिवस मैं जगता हूँ।
तुम ही तुम हो इस जीवन में,
याद तुम्हें बस करता हूँ।।

प्रिये सामने जब तुम रहती,
मन पुलकित हो जाता है।
लेता है यौवन अँगडाई,
माधव फिर प्रिय आता है।।
प्रेम सुमन पल-पल खिल जाते,
भौरों-सा मैं ठगता हूँ।

मत जाना तुम कभी छोड़ कर,
रात-दिवस मैं जगता हूँ।।

नेह डोर तुमसे बाँधी है,
जन्म-जन्म का बंधन है ।
साथ कभी छूटे ना अब ये,
प्रेम ईश का वंदन है ।।
मेरे हिय में तुम बसती हो,
नाम सदा ही जपता हूँ ।

मत जाना तुम कभी छोड़ कर,
रात-दिवस मैं जगता हूँ।।

रूप अनूप बड़ा मनमोहन,
तन में आग लगाता है ।
आलिंगन को तरस रहा मन,
हमें बहुत तडपाता है।।
चंचल चितवन नैन देख कर,
ठंडी आहें भरता हूँ।

मत जाना तुम कभी छोड़ कर,
रात-दिवस मैं जगता हूँ।।

परिचय :- मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश)
पति : पुरुषोत्तम भट्ट
माता : स्व. सुमित्रा पाठक
पिता : स्व. हरि मोहन पाठक
पुत्र : सौरभ भट्ट
पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट
पौत्री : निहिरा, नैनिका
सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन।
प्रकाशित पुस्तक : पंचतंत्र में नारी, काव्यमेध, आहुति, सवैया संग्रह, पंख पसारे पंछी
सम्मान : विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा, विद्या सागर और साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा, विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, गुंजन कला सदन द्वारा, महिला रत्न अलंकरण, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “उत्कृष्ट न्यायसेवा अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित तथा कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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