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चीखें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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बचपन से अवसाद और
कष्ट से पीड़ित रहा हूँ
मैं समझ नहीं पाता था
ये क्या और अखिर क्यों है
मैं अपने रक्त रिसते
घाव में चीख रहा हूँ
क्या कोई मेरी पुकार सुनेगा???

मेरी खामोश चीखें भी समझ पाएगा
जो मैं लाचार हो कर
अंदर ही अंदर
क्रंदन करता हूँ
क्या कोई उसे
समझ पाएगा????

हे मानव तुम्हारे
मुस्कराते चेहरों के पीछे
एक अंधेरी सड़क मिलों चलती है
जिसपर नफरत, क्रोध,
घृणा, नृशंसता रहती है
मेरी सालो साल खामोश
चीखें वहां तक नहीं पहुंचती हैं
मुझे आग में जीते जी जलाते हो
मुझे आग से नहलाते हो
पाप पुण्य की भाषा नहीं समझता
मगर ये इंसान का
कौन सा रूप दिखाते हो????

मैं गलियों, रस्ते,
काली धुंध भरी
दुनिया मे रहता हूँ
मैं क्या बिगाड़
पाता हूँ तुम्हारा????

मेरा जीवन उदासी, कष्ट,
और अंधेरी भावनाओं
के झुंड में बीत जाता है
क्या गुनाह करता हूँ
जो तुमसे थोड़ा सा प्यार,
ममता और साथ मांगता हूँ???

ईश्वर तो एक ही है,
जिसने तुमको बनाया
उसने ही मुझे बनाया
पर क्यों नहीं समझते
मुझे भी उतना ही दर्द होता है,
कटने, जलने और मरने
मे जितना तुमको,
जितना तुम खुद के
शरीर पर महसूस कर पाते हो
उस से कई गुना अधिक
हम हम रोज बर्दाश्त करते हैं!

विनती करता हूँ,
मत नारकीयता से संवारो हमे
तुम तो योग्य हो, उत्तर जीवी हो
हमको भी तो हक दे दो जीने का
अगर ये भी नहीं कर पाते तो,
सिर्फ वो राह बता दो, जहां
चंद रोटी के टुकड़ों के
लिए जूतों तले रौंदा ना जाऊँ
जहां अत्याचारों का
कोई कुचक्र ना हो
वहां सिर्फ करुणा और
प्रेम फलित हो मेरे लिए!!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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