डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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क्या कहा… भारत कृषि प्रधान देश है? नहीं जी, मुझे तो लगता है कि भारत शादी प्रधान देश है। भारत परंपराओं का देश भी है, और इस नजरिए से देखें तो यहाँ की प्रमुख परंपरा शादी ही है। शादियाँ यहाँ का मुख्य व्यवसाय, खानपान, परंपरा, रीति-रिवाज… सब कुछ हैं! यूँ तो शादियों का भी एक मौसम होता है, जैसे फसलों का रबी और खरीफ होता है। हिन्दू धर्मावलम्बियों में तो यह खासकर देवताओं की दिनचर्या के अनुकूल होता है। देवता जब अपने शयन काल से बाहर आते हैं, यानी देव उठनी एकादशी से शादियों का सीजन शुरू होता है। लेकिन आजकल शादियाँ हर मौसम में पाई जाती हैं!
इस देश का आदमी जब कुछ नहीं कर रहा होता या करने को कुछ नहीं होता, या उसे करने लायक कुछ नहीं छोड़ा गया होता है, तो वो शादी निपटा लेता है! खुद की, नहीं तो पड़ोसी की, रिश्तेदार की, किसी न किसी की तो निपटा ही लेता है! शादी यहाँ सिर्फ एक उत्सव के रूप में नहीं, बल्कि जीवन के अनिवार्य हिस्से के रूप में देखी जाती है। शादी इसलिए जरूरी मानी जाती है क्योंकि समाज का यह मानना है कि शादी के बाद ही संतान उत्पन्न हो सकती है। यदि बिना शादी के बच्चे हो सकते, तो शायद शादी की इतनी जरूरत नहीं होती।
शादी एक फुल फ्लेश कारोबार है, दो दिलों का व्यापार है, किसी के लिए प्रेम का इजहार तो किसी के लिए बस कारगिल वार है। शादी के कारोबार की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह आत्मनिर्भर नहीं है। आपको एक विपरीत लिंग का पार्टनर चाहिए ही इस कारोबार को शुरू करने के लिए। अब ऊपरवाले ने रजिस्ट्री कर के भेजी तो है… लेकिन कागजात नहीं दिखाए। आदमी या औरत दो- चार साल तो अपनी खोयी हुई रजिस्ट्री के कागजात ढूँढने में ही लग जाते हैं।
आदमी शादी एक ही बार कर सकता है… गलती दोहराने की गुंजाइश बार-बार नहीं होती (मैं कुछ अपवादों को यहाँ नहीं गिन रहा)। वरना आदमी सिर्फ शादी ही करे; इसके अलावा उसे न कोई त्योहार मनाने की जरूरत, न कोई संस्कार करने की, न कहीं फैमिली टूर करने की, न किसी रेस्टोरेंट में जाकर डिनर आउट करने की, न कोई अलग से शॉपिंग की। शादी सब कुछ तो करवा देती है। बीवी भी जिद करे कि चलो न, कई दिन हो गए, कहीं घूमने नहीं गए, बाहर खाना नहीं खाया, न ही तुम शॉपिंग करते हो… तो पति बोलेगा, “चलो, इस बार दुबारा शादी कर लेते हैं!” फिर पत्नी के सर पर शादी का भूत वापस सर चढ़कर बोलने लगेगा।
नौकरीपेशा आदमी भी दफ्तर से हर महीने छुट्टी ले सकता है… ‘जी, वो शादी करनी है…’ बिना किसी दूर के या पास के रिश्तेदार को फर्जी तरीके से मारने का बहाना किए। अपने घर के बुजुर्गों को कागजों में बार-बार स्वर्गीय हो जाने की दरख्वास्त नहीं लगानी पड़ेगी। शादी सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए नहीं होती… कई बार दूसरे कारणों से भी होती है। जैसे फूफा को अपनी फुफाई दिखानी होती है, रिश्तेदारों को मीन-मेख निकालनी होती है, दोस्तों को “हम तो डूब चुके सनम, तुम्हें भी डूबते देखेंगे” वाले भाव में शादी करनी होती है। कई दावतखोर भी शादी इसलिए करवाते हैं कि दावत उड़ा सकें। कुछ लोग इसे गंगा नहाने जैसा पुण्य मानते हैं, तो कुछ दादा-दादी अपनी साँस रोककर धमकी देते हैं बेटे को कि “अब तो तभी प्राण छोड़ेंगे जब पोते की शादी हो जाएगी।”
हमारे पड़ोसी शर्मा जी का तो एक अलग ही कारण है बेटी की शादी कराने का… ढूँढ रहे हैं दूल्हा। बोले, “यार गर्ग साहब, आपको तो पता है, २५ साल हो गए इस कॉलोनी में, न जाने कितनी शादियों में लिफाफा थमा चुके… अब हमें भी तो मौका मिलना चाहिए न। २५ साल बाद मौका मिला है लिफाफे लेने का, बेटी को सिर्फ इसलिए बड़ा किया की एक दिन शर्मा जी के यहाँ भी लिफाफों का ढेर लगेगा।” एक आदमी ने इश्तिहार निकाला, “चाहिए सुंदर, सुशील, गृह कार्य में दक्ष, पढ़ी-लिखी, कामकाजी, मितभाषी महिला, शादी के लिए।” अब एक गृहणी में ये सारे गुण ढूँढना गुनाह की श्रेणी में आता है। अगर आदमी को बार-बार शादी करने की इजाजत हो, फिर क्या… १०-१२ शादियाँ तो कम से कम आदमी कर ही ले, इन सभी गुणों को घर में लाने के लिए।
बेटा, बाप के लिए उम्मीद का प्रतीक होता है, और अगर बेटा उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता, तो उसकी शादी करा दी जाती है ताकि कम से कम पोते के रूप में नई उम्मीद जगा सके। आधी शादियाँ गाँवों में तो सिर्फ पोते का मुँह देखने के लिए ही होती हैं ताकि दादा-दादी का स्वर्ग का रास्ता क्लियर हो सके। स्वर्ग की सीढ़ी तो पोता-पोती ही चढ़ाते हैं। गाँव-देहात में शादी एक तरह की परंपरा है जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी निभाया जाता है। किसान खेती करता है और बाकी समय घर में इस परंपरा को निभाता है । जब गाँव में कोई बच्चा बड़ा होता है (वैसे गाँव में बच्चे बच्चे ही नहीं रहते ,पैदा ही बाप बरोबर होते हैं ) तो उससे पूछा जाता है, “अब तुम क्या बनोगे?” और जवाब होता है “बाप बनना है।” और इसके लिए शादी जरूरी है।
अगर कोई लड़का बिगड़ जाए, तो तुरंत उसकी शादी कर दी जाती है ताकि वह किसी और की जिंदगी बिगाड़ सके। कभी-कभी शादी व्यक्तिगत कारणों से भी होती है, जैसे प्रेम-प्यार। लेकिन यहाँ भी शादी का कारण कई बार प्रेम के दीगर उत्पादों जैसे बदनामी, बच्चे आदि का वैधता देने के लिए होता है मुझे अपने गाँव की यादें हैं, एक हमारे समाज के परिवार की यादें। परिवार के मुखिया ने गृहस्थ जीवन का पालन किया। जाने अनजाने में चार बेटे पैदा कर दिए , उनको खींच-खांचकर बड़ा किया, गाँव की पुश्तैनी दुकान पर ही बिठा दिया सबको। खूब अच्छा धंधा था, लेकिन गाँव में कोई अपनी लड़की को ब्याहे नहीं। उन्होंने एक बढ़िया काम किया। पास के ही शहर में बड़े बेटे को दुकान खुलवा दी, उसमें भर दिया लाखों का सामान। रेडीमेड गारमेंट्स की दुकान। लड़की वालों के रिश्ते आने लगे, बेटे की शहर में दुकान… बेटी शहर में ही रहेगी..लडकी वालों ने भी ख्वाब पाल लिए जी..। बड़े बेटे की शादी हुई, शादी होते ही उसे गाँव बुलाकर पुश्तैनी दुकान पर बिठा दिया। शहर की दुकान बनाये राखी , सामान भी रेडीमेड गारमेंट्स का जो खराब नहीं हो… अब दूसरे बेटे को बिठा दिया। उसकी भी शादी करवा दी, और फिर तीसरे बेटे की। इस तरह चारों बेटों का विवाह करवा दिया और… फिर दुकान को परमानेंट बंद करवा दिया।
कई और परिवारों ने भी इस चलन को अपनाया। खैर, गाँव में जिनकी शादी हो जाती है, वो बाप बन जाते हैं, और जिनकी नहीं होती, वो बाबाजी बन जाते हैं। फिर ये बाबाजी दूसरों की शादियों में नुस्खे बताते हैं, जैसे ताबीज या टोने-टोटके बाँटते हैं। पति-पत्नी के मधुर संबंध और अंतरंग संबंधों के बारे में ऐसी-ऐसी जानकारी देते हैं जो जिनकी शादी हो गई है, उन्हें भी नहीं पता। वो गर्भ में ही बेटियों को बेटा बनाने के टोटके बताते हैं। आज ही अखबार में पढ़ा… देवता जागने वाले हैं। शादियों का कारोबार इस बार १ लाख तीस हजार करोड़ का होने वाला है। निमंत्रण पत्र आने शुरू हो गए हैं… शादी में जाने के लिए ट्रेन रिजर्वेशन और नहीं जाने के लिए सटीक बहाने गढ़ने शुरू हो गए हैं।
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही आपकी पहली पुस्तक नरेंद्र मोदी का निर्माण : चायवाला से चौकीदार तक प्रकाशित होने जा रही है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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