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अँधियारे की हार है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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(१)
दीवाली का आगमन, छाया है उल्लास।
सकल निराशा दूर अब, पले नया विश्वास।।
पले नया विश्वास, उजाला मंगल गाता।
दीपक बनकर दिव्य, आज तो है मुस्काता।।
नया हुआ परिवेश, दमकती रजनी काली।
करे धर्म का गान, विहँसती है दीवाली।।
(२)
अँधियारे की हार है, जीवन अब खुशहाल।
उजियारे ने कर दिया, सबको आज निहाल।।
सबको आज निहाल, ज़िन्दगी में नव लय है।
सब कुछ हुआ नवीन, नहीं थोड़ा भी क्षय है।।
जो करते संघर्ष, नहीं वे किंचित हारे।
आलोकित घर-द्वार, बिलखते हैं अँधियारे।।
(३)
दीवाली का पर्व है, चलते ख़ूब अनार।
खुशियों से परिपूर्ण है, देखो अब संसार।।
देखो अब संसार, महकता है हर कोना।
अधरों पर अब हास, नहीं है बाक़ी सोना।।
दिन हो गये हसीन, रात लगती मतवाली।
बेहद शुभ, गतिशील, आज तो है दीवाली।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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