अशोक कुमार यादव
मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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कुर्सी पर बैठकर तू बन गया है भ्रष्टाचारी दानव।
धन के लालच में फर्ज भूल कर बना है अमानव।।
हड़प लेता है गरीब-दुबरों के मेहनत की कमाई।
जनता से रिश्वत लेते हुए तुमको शर्म नहीं आई।।
खटमल बनकर चूस रहा है कामगारों का खून।
भेड़िया बन मांस को नोच रहा है अंधाधुंध।।
तू अंग्रेज है: स्वतंत्र भारत के निर्दयी अत्याचारी।
तू कुष्ठ रोग है: जीवाणु युक्त संक्रामक बीमारी।।
जन सेवक, रक्षक बनकर, बन गया है भक्षक।
फन फैला कर डस रहा, जहरीला नाग तक्षक।।
दुनिया में चारों तरफ लागू है जंगल का कानून।
मानसिक हिंसक छिन लिया चैन और सुकून।।
निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़)
संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।
प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग
सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ‘शिक्षादूत’ पुरस्कार से सम्मानित, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, छत्तीसगढ़ हिन्दी रत्न सम्मान, अटल स्मृति सम्मान, बेस्ट टीचर अवॉर्ड।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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