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चांद की टीस

माधवी तारे
लंदन
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चांद आधा आज गगन में
कहता है धरती को मन में
क्यों मैं पूरी चमक दिखाऊं
जब श्रद्धा ही न हो विश्व में

जनता भटके भ्रमण ध्वनि में
समय नहीं है उनको घड़ी पल
बंद कमरे में वीडियो गेम पर
देखा करते कृत्रिम चांद

बेदर्द पड़े दिल सर्द पड़े
भटक-भटक ये कहां चले
मुझ पर न किसी की नज़र पड़े
कहता है चांद मायूसी में

सत्ता की धुन में खोए कुछ
अमर्यादित चाल चले
ऐश्वर्य का संचयन करते-करते
कुमार्ग का चयन कई लोग करें
कैसे चमकूं पूरा मैं फिर

भारत की संस्कृति छूटी
चलते सब पश्चिमी पथ पर
कैसे चमकूं पूरा अब मैं
यह सोच रहा है चांद मन में

अकूत ऐश्वर्य का था वो मालिक
स्वयं रहा सदा सादगी में
विकास के उस रतन को
आखिरी नमन करने
आधा ही आया मैं नभ में

परिचय :-  माधवी तारे
वर्तमान निवास : लंदन
मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय हिंदी रक्षक संघ (लन्दन शाखा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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