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प्रश्न घनैरे उठते भीतर

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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प्रश्न घनैरे उठते भीतर
और समाधान भी पाया है.
पर एक प्रश्न सदा से बाकी
समझ नहीं जो आया है।

यक्ष-प्रश्न से होते तो
मैं भी उत्तर कब के दे देता.
निजी-प्रश्न मुझी से मेरा
पर अपनों में कह लेता।

बडा़ सहज सा प्रश्न स्वयं से
अक्सर करता रहता हूँ.
मै-मैं-मैं-मैं करूँ रात-दिन,
हूँ भीतर कहाँ रहता हूँ?

आँत-औज़ड़ी हृदय-फेफड़ें
हड्डी़-पसली भरी पड़ी है.
आमाशय भी भरा फेफड़ें
साँस के उपर साँस खडी़ है।

मकड़-जाल से जटिल-जाल
सिर में सारे नसें भरी हैं.
और नसों में रक्त दौड़ता
ऐसे-जैसे नस नगरी है।

नयनों में भी दृश्य समाये
और कानों में घुस आया शोर.
आधा-जीवन रात भर गई
आधा ही जीवन होती भोर।

बाहर तो मैं देखूँ सबको
भीतर भी सब जान गया हूँ.
कोई जगह नहीं खाली भीतर
मैं हूँ तो फिर रहे कहाँ हूँ।

इतना तो मैं जान गया कि
मेरा होना तो सच है.
और जीव को सृष्टी देती
सुँदर देह-कवच है।

पींड-पदारथ देह समय की
नित क्षय होती जाय.
क्षय-क्षय होती नष्ट हुए तब
जीव कहाँ रह जाय?

मै भी जाना देह नहीं मैं
फिर हूँ तो फिर हूँ मैं कौन?
द्वैत रहे क्यूँ भीतर मेरे
कैसे जानूँ? उत्तर-मौन।

हूँ तो रूप-रंग क्या मेरा?
हूँ तो कहाँ ठीकाना मेरा?
हूँ तो फिर क्यूँ लगुँ अधूरा?
हूँ तो क्यूँ नहीं पूरा -पूरा?

हूँ तो क्या बाधा कहाँ अटका?
हूँ तो क्यूँ हूँ भटका-भटका?
हूँ तो किसको लगी निराशा?
हूँ तो क्यूँ हूँ प्यासा-प्यासा?

बाहर से जग जाने जिसको
मात्र मेरी है अभिव्यक्ति.
सच कहता हूँ मैं नहीं जाना
मेरे भीतर का व्यक्ति।

मैं बस अपना होना जाना
होने की अनुभूति जानी.
सब से ज्यादा पास मेरे मैं
अपनी सब प्रकृति जानी।

जहाँ-जहाँ तक दिखे मुझे जो
सबकी-सब आकृति जानी.
जो देखा सब देखा जाना
उनकी सब प्रवृति जानी।

युग-युग से मैं खोजूँ स्वयं को
हूँ भीतर तो हूँ मैं कौ?
कब-तक रहना रहे देह में
कैसे जानूँ उत्तर-मौन।।

मैं विस्मय से भरा हुआ हूँ
मेरे संग-संग क्या से क्या है
परिवर्तन तो हुआ देह का
वो मस्ती वो जोम कहाँ है।

बात-बात में रहे मचलता,
बाल्य-काल सा रोस कहाँ है?
अपनों में मिट जाने वाला
मस्त-मदीला जोश कहाँ है?

कहाँ गये रस? सारे-सारे
रसिया भीतर छुपा कहाँ है?
आज भी डूबा कोई तो रस में
वो रस भीतर भरा कहाँ है?

सब जाना सब संग्रह मुझमें
भीतर जानकार वो कौन?
युग-युग से मैं खोजूँ स्वयं को
कैसे जानूँ उत्तर-मौन?

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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