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साबरमती के संत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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साबरमती के संत वतन आज़ाद कराया तुमने।
ऐसा किया कमाल तुम्हारा नाम लगे सब जपने।।

सत्य, अहिंसा के शस्त्रों से, रिपु पर धावा बोला।
वंदे मातरम् के शब्दों से सबने था मुँह खोला।।
बापू तुमने पूर्ण कर दिए आज़ादी के सपने।
ऐसा किया कमाल तुम्हारा नाम लगे सब जपने।।

अंधकार में किया उजाला, सूरज नया उगाया।
लाठी ने यूँ किया करिश्मा, हर गोरा थर्राया।।
सारी दुनिया में यश गूँजा, सभी बन गये अपने।
ऐसा किया कमाल तुम्हारा नाम लगे सब जपने।।

भारत माता बिलख रही थी, तुमने बंधन तोड़े।
अंग्रेज़ी सत्ता के तुमने बढ़कर हाथ मरोड़े।।
हे!बापू यह ताप आपका, सब ही खादी पहने।
ऐसा किया कमाल तुम्हारा नाम लगे सब जपने।।

साबरमती के संत, बने तुम सत्य-अहिंसा पोषक।
घबराये वे सारे ही तो, जो थे पक्के शोषक।।
दाँत तोड़, बिन ज़हर कर दिया, लगे हुये जो डसने।
ऐसा किया कमाल तुम्हारा नाम लगे सब जपने।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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