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तो क्या

विष्णु बैरवा
भीलवाड़ा (राजस्थान)
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मस्त रहूंगा चुस्त रहूंगा
अरे! कल की चिंता करके
क्या आज जीना छोड़ दूं?
आ गई बाधा तो क्या
लक्ष्य पथ से रस्ता मोड़ लूं?
ठोकर खाके गिर गया मैं
तो सपने ऊंचे देखना रोक दूं?
मन के बहकावे में आके
क्या दृष्टि मोह से जोड़ लूं?
माया खींचे भ्रम में डाले
कृष्ण कृष्ण रटना छोड़ दूं?
चढ़ाई अभी शिखर तक बाकी
डर से, आलस से नाता जोड़ लूं?
शुरू करते गिर गया
तो निराशा में खुद को झोंक दूं?
माना, अभी अंधेरे से गिरा हूं
तो प्रकाश की तलाश ही छोड़ दूं?
अरे! ताने हजार सुनके लोगों के
हटके चलना छोड़ दूं?
कहे ‘श्री विष्णु’ सुनो महारथियों
ईश्वर का स्मरण करके
संघर्ष में खुद को झोंक दो
बिना चुनौती जीवन निरस है
भिड़ना इनसे सीख लो।

परिचय :  विष्णु बैरवा
निवासी : गांव- बरांठिया, ब्लॉक- भीलवाड़ा, (राजस्थान)
कथन : मैं कल्पनाओं को शब्दों में पिरोने का प्रयास करता हूँ ।
हिंदी साहित्य की विशालता का बखान किया करता हूँ ।
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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