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मिलने का संयोग नहीं

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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हम-तुम एक धरा पर फिर भी
मिलने का संयोग नहीं है!
प्रेम गणित है ऐसा जिसमें
सुख का कोई योग नहीं है!!

दूरी जिससे कम हो जाए
ऐसी कोई राह नहीं है!
और तुम्हारे बिन मंजिल से
मिलने की भी चाह नहीं है!

पत्थर का सीना पिघलाए
फूलों में वो आह नहीं है!
आज मरें हम, कल मर जाएं,
दुनिया को परवाह नहीं!!

बादल से सावन, सागर से मोती,
नदियों से गंगाजल,
सारे जल-जीवन में केवल
‘आंसू’ का उपयोग नहीं है!

सांसों का संगीत जिन्हें
लगता है धड़कन की मजदूरी!
मृग से ज्यादा प्यारी होती
है जिनको कस्तूरी!!

कैलेंडर बदले जाने को हैं
जिनके दिन-रात ज़रूरी!
रंग महज लगती है जिनको
दुल्हन जैसी सांझ सिंदूरी!!

उनको ही तो मुस्कानों का
सारा कारोबार फलेगा,
जिनकी आंखों के पानी का
पीड़ा से उद्योग नहीं है!

हमने खुद अपने आंचल पर
कांटों को अधिकार दिया है!
हमने पीड़ा से ही केवल
पीड़ा का उपचार लिया है!!

प्रेम-कथा में अपने हिस्से
आया हर किरदार जिया है!
हम हर दुःख के अधिकारी हैं,
आखिर हमने प्यार किया है!!

हम दोनों के पास नयन हैं,
हम दोनों ने सपनें देखें,
हम दोनों ने प्रेम किया है,
जग पर कुछ अभियोग नहीं है!

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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