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जनसाधारण में रासलीला पर भ्रांतियां

डॉ. किरन अवस्थी
मिनियापोलिसम (अमेरिका)

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 ५/६ वर्ष से लेकर १२ वर्ष तक के बालक कृष्ण की रासलीला को कुतर्कों से लोगों को भ्रमित किया गया। १२/१३ वर्ष तक तो वे मथुरा चले गये, फिर कभी न लौटे। गोपियां तो गृहणियां थी, जो कृष्ण जी की मोहक मुरली के स्वर सुनकर दौड़ी आती थीं। संगीत प्रेमी वो भी‌ नन्हे बालक‌ के मुख‌ से, कौन न आतुर होगा सुनने को। एक को बीच में खड़ा करके आसपास नाचने गाने की परंपरा आज भी होली के दिनों में उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश में दिखाई देती है।
भारतीय शास्त्रों में गहरे दर्शन को केवल प्रतीकात्मक रूप में दर्शाया गया‌ है। चैत्र की फसल आए या सावन का महिना हो, संगीत तो फूट ही पड़ता है व नर्तन गायन शुरू हो जाता है। बालक रुपी परमेश्वर धर्म संस्थापना के निमित्त धरती पर आए, तत्कालीन दिग्भ्रमित जनता के साथ खेलकूद करके, नृत्य गायन वादन करके सबको एकत्रित करते थे, भौतिकता के जाल में फंसे गोकुलवासियों को उन सबके साथ पृथक पृथक रुप से नृत्य करते दिखाई देते थे, उन्हें आध्यात्म की ओर ले जाने का प्रयत्न करते थे। यह उनकी रहस्य लीला होती थी। हर गोपी समझती थी कि कान्हा केवल उनके साथ रहते हैं तो उनके हर कर्म को देख रहे हैं। इस प्रकार वो पाप कर्मों से शनै:शनै: मुक्त हो रही थीं। यह कृष्ण जी की रहस्यमई लीला थी। इसे रासलीला भी कहा जाता है क्योंकि यह सबको प्रिय थी। वस्तुत: कृष्ण जी रासलीला के माध्यम से रहस्य लीला किया करते थे।
मैंने बचपन में वृंदावन की कृष्ण लीला, चौबेपुर जिला कानपुर की कृष्ण लीला भी देखी। दोनों स्थानों पर मुझे शब्द सुनने को मिला “रहास लीला”। पूछने पर कि “रहास” माने क्या, बड़े बुजुर्ग लोग यह तब बताया करते थे कि यह भगवान की रहस्य लीला है जिसके माध्यम से वो सबको पृथक रूप से सबके सामने आकर सबको दर्शन देते हैं।
जय श्री कृष्ण।

परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी
सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर
निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश)
वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका)
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान
सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती।
पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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