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प्रतिद्वंदी

डॉ. कांता मीना
जयपुर (राजस्थान)
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अच्छा चलो कल से हम
नहीं रहेंगे, तुम्हारे प्रतिद्वंदी,
क्यों ना हम भी कर लें
इसी बात पे रजामंदी
बेवजह दिखाता नहीं
कोई आजकल किसी
से भी हमदर्दी
एक अरसे से वैसे भी
हम यही बात सुना करते हैं।
सदा से ही चला करती है
मानवता के द्वार पर मंदी
फिर क्यों उलझे हम
बेवजह एक दूजे से
इस बात पर की
कौन बाहर का है
और कौन घर का
बस विचार तुम्हारे
हमारे बेमेल है।
सब सिद्धांतों का ही
तो खेल है।
अच्छा चलो कल से हम
नहीं रहेंगे तुम्हारे प्रतिद्वंदी।

परिचय :- डॉ. कांता मीना (शिक्षाविद् एवं साहित्यकार)
निवासी : जयपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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