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असो कसो बायरो चले है

नेहा शर्मा “स्नेह”
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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(मालवी कविता)

मनक ना कांपे, पेड़ ठिठुराये,
जन जनावर दुबका पड्या,
हरा छोड़ और उम्बी सेके,
कुल्फी के हाथ नी लगई रिया,
असो कसो बायरो चले है।

नेता राग नी सुनइ पई रिया है,
चिल्लई के सबको गलो बैठी गयो,
विपक्ष का साथ वि आग सेके,
माहौल चुनाव को ठंडो पड़ी गयो,
असो कसो बायरो चले है।

प्रेमी छोरा भी धुप में निकले,
डरे नी डुंडा घरवाला ना से,
पण आवारा ढोर सेटर नी पेने,
आग बले असा इतराना से,
असो कसो बायरो चले है।

बच्चा ना स्कूल नी जाये,
ठण्ड में उठी ने कोण नहाये,
उठाये बिठाये पाछा सोई जाये,
जद स्कूल बी सरकार बंद कराये,
असो कसो बायरो चले है।

उनके जिनके रोज निकलनो,
उनके मौसम से कई मतलब नी,
बायरो चले के लू तापे,
उनका जीवन में चेन कइ नी,
जिनके जिम्मेदारी है
सगळा दिन बराबर होये,
माँ, मजदूर अने पिता जो घर को,
उनके ठण्ड में गर्मी होये,

माँ चूल्हा का आगे जाये,
मजदूर टेम से रेडी लगाए,
घर का पिता जो चिंता करे है,
उनके घर से निकलनो रे है,
कसी भी ठंडी कसी भी गर्मी,
काम उनको चलतो रे है,

कसो बी बायरो चले,
काम इनका चलतो रे है …
काम इनको चलतो रे है …!

परिचय :-  नेहा शर्मा “स्नेह”
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
विशेष : आपने अपना एमबीए इंदौर से पूरा किया है। ऑस्ट्रेलिया में काम किया लेकिन अपने देश के लिए योगदान देने की भावना मुझे वापस इंदौर ले आई। आपको हिंदी और मालवी में विशेष रुचि है जिसका श्रेय आप अपनी माताश्री को देती हैं। आपने अपनी माताश्री के मार्गदर्शन में कई कवि सम्मेलनों में भाग लिया है और कुछ लेख एवं कवितायेँ भी प्रकाशित हुई है
आपके कथन : मुझे यकीन है कि हमारी मातृभाषा में हमारा छोटा से छोटा योगदान आने वाली पीढ़ियों की मदद करेगा। हमें मंच प्रदान करने में मदद के लिए मैं श्री डॉ.पवन मकवाना सर की आभारी हूं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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