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कुमुदिनियों के गजरे सूखे

मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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कुमुदिनियों के गजरे सूखे,
वसंत की अगवानी में।
रोम-रोम छलनी भँवरे का,
माली की मनमानी में।।

परिवर्तन आया जीवन में
फूल गुलाबों के चुभते।
गुलमोहर के पेड़ो में अब,
बस काँटे निशदिन उगते।।
गयीं रौनकें हैं उपवन की
सुगंध न रातरानी में।

बोली लगती सच्चाई की,
मिथ्या सजी दुकानों में।
प्रतिपक्षी आश्वासन देते,
नारों भरे विमानों में।।
दाग लगा अपनी निष्ठा को,
पोंछें चूनर धानी में।

लाक्षागृह का जाल बुन रही,
बैठी कौरव की टोली।
विष का घूँट पी रहे पाँडव,
खाकर रिश्तों की गोली।।
जमघट अधर्मियों का लगता,
आग लगाते पानी में।

पाँच सितारा होटल में तो,
भाग्य गरीबों का सोता।
नित्य करों के नये बोझ से,
व्यापारी बैठा रोता।।
चोट बजट घाटे का देता,
अपनी ही नादानी में।

परिचय :- मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश)
पति : पुरुषोत्तम भट्ट
माता : स्व. सुमित्रा पाठक
पिता : स्व. हरि मोहन पाठक
पुत्र : सौरभ भट्ट
पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट
पौत्री : निहिरा, नैनिका
सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन।
प्रकाशित पुस्तक : पंचतंत्र में नारी, काव्यमेध, आहुति, सवैया संग्रह, पंख पसारे पंछी
सम्मान : विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा, विद्या सागर और साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा, विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, गुंजन कला सदन द्वारा, महिला रत्न अलंकरण, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “उत्कृष्ट न्यायसेवा अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित तथा कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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